किसी को बता नहीं सकता कि कैसे-कैसे
नज़रों से बचने की उफ़ उसकी ये अदा
आसमा को भी किनारा कर रहा हो जैसे !!
कोई सितारा टूट कर गिर ना जाए कहीं
क्या बताऊँ करता है वो इशारा कैसे-कैसे !!
उसे देखा है मैंने लाज़वाब होकर अक्सर
उसे देखना मज़ा ही कुछ देता है ऐसे-ऐसे !!
खुशियों से भरा कित्ता अच्छा लगता है ना
गम ना होता मगर तो भला ख़ुशी होती कैसे !!
तेरी दीद में इस कदर बिछा रखी है मैंने नज़र
राह में जलता हुआ कोई दीया रखा हो जैसे !!
तुझे नज़र भर-भर देखना चाहता हूँ ओ यारब
1 टिप्पणी:
Bahut sundar likha hai . achchhi lagi
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