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रविवार, 7 अगस्त 2011

गम ना होता मगर तो भला ख़ुशी होती कैसे !!

किसी को बता नहीं सकता कि कैसे-कैसे 
हमने भी देखे हैं दोस्तों मंज़र ऐसे-ऐसे !! 
नज़रों से बचने की उफ़ उसकी ये अदा 
आसमा को भी किनारा कर रहा हो जैसे !!
कोई सितारा टूट कर गिर ना जाए कहीं 
क्या बताऊँ करता है वो इशारा कैसे-कैसे !!
उसे देखा है मैंने लाज़वाब होकर अक्सर 
उसे देखना मज़ा ही कुछ देता है ऐसे-ऐसे !!
खुशियों से भरा कित्ता अच्छा लगता है ना 
गम ना होता मगर तो भला ख़ुशी होती कैसे !!
तेरी दीद में इस कदर बिछा रखी है मैंने नज़र 
राह में जलता हुआ कोई दीया रखा हो जैसे !!
तुझे नज़र भर-भर देखना चाहता हूँ ओ यारब 
तू मगर मिरी नज़र में समाए तो समाए कैसे !! 

1 टिप्पणी:

Amrita Tanmay ने कहा…

Bahut sundar likha hai . achchhi lagi