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बुधवार, 23 मार्च 2011

अब अगर जो वो रास्ते में आ जाए !!

य काफिया और रदीफ़ तो हटा दे जाहिद ,ज़रा मेरे हर्फ़ ग़ज़ल में समां जायें !!
जिंदगी का हर लम्हा ही एक मकता है ,हर शै के बाद दूसरी शै ही आ जाए !!
मुश्किलों ने हमसे कर ली है अब तौबा, अब अगर जो वो रास्ते में आ जाए !!
उम्र को ही पैराहन की तरह ओढ़ा हुआ है,मौत जब आए,इसी में समां जाए !!
अब तो तू ही तू नज़र आता है यारब,जहाँ में जहाँ-जहाँ तक मेरी नज़र जाए !!
हम हर्फ़ को ही खुदा समझाते हैं यारा,हर हर्फ़ की ही जद में खुदा आ जाए !!
इक जरा मन को कडा कर लीजिये ,हर फिक्र धूल में उड़ती ही नज़र आए !!
इतनी कड़ी निगाहों से ना देखिये हमें,कहीं खुदा ही घबरा कर ना आ जाए !!
दुनिया में रसूख उसी का होता है,जिसे,रसूख की फिक्र कभी भी ना सताए !!
सिर्फ़ मुहब्बत का भूखा हूँ"गाफिल",प्यार से मुझे कोई कुछ भी खिला जाए !!

बुधवार, 16 मार्च 2011

कुछ न कुछ करते रहिये....!!!


कुछ न कुछ करते रहिये यां जमे रहने के लिए ,
इस जद्दोजहद में ख़ुद के ठने रहने के लिए !!
यहाँ कोई ना लेगा भाई आपको हाथो-हाथ ,
बहुत जर्फ़ चाहिए आपके खरे रहने के लिए !!
इन्किलाब न कीजै रहिये मगर आदमी से ,
रूह का होना जरुरी है अपने रहने के लिए !!
सब मुन्तजिर हैं कि मिरे लब खुले कब ,
कुछ बात तो हो मगर मेरे कहने के लिए !!
इस दुनिया से इन्किलाब की उम्मीद न करो,
मर रहे सब लोग यां अपने जीने के लिए !!
हम झगडों के कायल हैं ना अमन के खिलाफ,
कुछ आसमां हो कबूतरों के उड़ने के लिए !!
हम रहना चाहते हैं सबसे मुहब्बत के साथ ,
कोई तैयार ही नहीं है प्यार करने के लिए !!
जो कर रहे हो तुम उसके सिला की सोचो ,
नदिया बही जा रही है बस बहने के लिए !!
पशोपेश में है"गाफिल"क्या करे ना करे ,
क्या य जगह बची है हमारे रहने के लिए !!

शुक्रवार, 11 मार्च 2011

सपने में भी रोकती है बेटियाँ....!!

सपने में भी रोकती है बेटियाँ....!!
एक बिटिया दस वर्ष की हो गयी है मेरी 
और दूसरी भी पांच के करीब....
कभी-कभी तो सपने में ब्याह देता हूँ उन्हें 
और सपने में ही जब 
जाता हूँ अपनी किसी भी बेटी के घर....
तो मेरे सीने से कसकर लिपट कर 
खूब-खूब-खूब रोती हैं बेटियाँ....
मुझसे करती हैं वो 
खूब-खूब-खूब सारी बातें....
अपने घर के बारे में 
माँ के बारे में और 
मोहल्ले के बारे में...
और तो और कभी-कभी तो 
ऐसी-ऐसी बातें पूछ डालती हैं 
कि छलछला जाती हैं अनायास ही आँखे 
और जीभ चुप हो जाती है बेचारी...
पता नहीं कितने तो प्यार से 
और पता नहीं कितना तो..... 
खाना खिलाये जाती हैं वो मुझे....
और जब चलने लगता हूँ मैं 
वापस उनके यहाँ से....
तो एक बार फिर-फिर से...
खूब-खूब-खूब रोने लगती हैं बेटियाँ 
कहती हैं पापा रुक जाओ ना....
थोड़ी देर और रुक जाते ना पापा....
कुछ दिन रुक जाते ना पापा....
पापा रुक जाओ ना प्लीज़...
हालांकि जानती हैं हैं वो 
कि नहीं रुक सकते हैं पापा.....
मगर उनकी आँखे रोये चली जाती हैं....
और पापा की आँख सपने से खुल जाती है....
देखता हूँ....बगल में सोयी हुई बेटियों को....
छलछला जाता हूँ भीतर कहीं गहरे तक...
चूम लेता हूँ उनका मस्तक....
देखता हूँ....सोचता हूँ...बहता हूँ....
कि उफ़ कितनी गहरी जान हैं मेरी बेटियाँ....!!!

-- 
http://baatpuraanihai.blogspot.com/

बुधवार, 9 मार्च 2011

आठ मार्च (महिला-दिवस)के बाद.....................!!!!

सुनो....सुनो.....सुनो....सुनो.....
ओ देवियों....
ओ संसार की तमाम नारियों...
बालाओं...कन्याओं....
इस,बीते महिला-दिवस के बाद...
तुम्हारे ऊपर अब किसी पुरूष का
कोई अत्याचार नहीं होगा....
संसार-भर के मीडिया में
महिला-दिवस के प्रचारित होने के बाद
सहम गया है संसार-भर का पुरुष....
और कसम खा ली है उसने कि....
अब नहीं करेगा वह नारी का अ-सम्मान
तो हे सम्पूर्ण नारियों....
अब विश्व-विजेता हो तुम...
और अब आगे चलेगी तुम्हारी ही मर्ज़ी
अब चार साल से बारह साल की बच्चियां
नहीं फ़ेंक दी जायेंगी कहीं कुकर्म के बाद...
और किसी चलती लड़की पर,
कभी तेज़ाब नहीं फेंका जाएगा....
अब कोई अरुणा नहीं पड़ी रहेगी....
सैतीस साल तक किसी अस्पताल के बिस्तर पर...
और ना ही पच्चीस सालों तक लड़ना पडेगा,
किसी भंवरी देवी को कचहरी में न्याय....!!
कोई किसी नारी को जीते-जी....
किसी तंदूर में नहीं भूनेगा....
और ना ही कोई आरूषी अपने ही माँ-बाप से
ह्त्या का शिकार बन पाएगी.....
और तो और अपने इस भारत में
अब कहीं कोई दहेज़-ह्त्या नहीं होगी....
यहाँ तक कि किसी मनचले की किसी....
छेड़खानी का शिकार भी नहीं बनेगी कोई लड़की....
और रात को अकेले चल सकोगी तुम सब भयहीन,सड़कों पर
और सारे पियक्कड़ और क्रोधी पति भी आठ मार्च के बाद
अपनी स्त्री को अपने जुल्म का शिकार नहीं बनायेंगे...
और ना ही अब समझी जायेगी किसी स्त्री की योनि...
अपनी तिजोरी के धन या जमीन की भांति अपनी मिलकियत
हे दुनिया की तमाम देवियों...
कितनी आशावादी हो ना तुम सब....
अब तो मैं भी तुम सबकी तरह इस आशा का शिकार हो चुका हूँ
ऐसा लगता है कि किसी(ब्राहमण) ने ठीक ही कहा है....
कि साल अच्छा है.....(चाहे बरसों पहले....!!)
आठ मार्च के बाद ऊपर लिखा हुआ ही होगा....
यानी कि कोई जोर और जुल्म नहीं होगा तुमपर....
यह सब होगा और जरूर होगा.....मगर....
तुम सबकी मृत्यु के पश्चात.....!!
(अभी-अभी आज के प्रभात-खबर में पढ़ा कि बीती रात
या दिन बारह साल की एक बाला को
कुकर्म करके हत्या कर खेत में फ़ेंक दिया गया) 

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http://baatpuraanihai.blogspot.com/