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शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

बस इक बार....ज़रा तू रास्ता तो बदल कर देख.....!!!


मन बहुत अशांत है ना
और वो तो अशांत ही रहेगा तेरा
तूने जो चुना है खुद के लिए रास्ता
वो हमेशा-हमेशा अशांति की ओर ही जाता है
तू चुने चाहे अपना कैरियर या कुछ भी और
तेरी चाहना का स्त्रोत महज तेरा स्वार्थ है या कोई और हवस
तेरे सपनों में तेरी जो दुनिया है
वो एक आरामतलब और ऐश्वर्यपूर्ण और कपटपूर्ण दुनिया है
तू चाहता है कि अपने मतलब के लिए तू सबसे कपट करे
मगर तूझे कोई धोखा ना दे तुझसे कोई मक्कारी ना करे
मगर मेरे दोस्त ऐसा कभी ना हुआ है और ना होगा ही कभी
जब भी कोई चुनता है मक्कारी भरी राह
तो यह तय हो जाता है कि उसका अंत क्या होगा
बेशक कुछ दिन वो राज करता हुआ दिखाई पड़ता है भी है
मगर ये टिमटिमाहट महज कुछ दिनों की ही होती है....
और एक महत्वपुर्ण बात और
कि राज करते हुए इस सारे समय में
वो कभी शांत नहीं होता और सही तौर पर सुखी भी नहीं
बेशक उसके धन-वैभव भरे जीवन से ऐसा प्रतीत हो
कि पता नहीं कौन सा ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जी रहा होओ वह
मगर मेरे दोस्त एक बात बताऊँ मैं तुझे....??
खुशी की चाभी ऊपर वाले ने कभी धन-दौलत के हाथ में नहीं दी
और दूसरों का हक मारकर खाने वालों और
तरह-तरह की गद्दारी कर के जीने वाले अगर कभी भी
अपने मरने के बाद यह देख पायें कि उनके बच्चों पे क्या गुजरी
तब वो सोचने लगेंगे कि हाय मैनें यह क्या कर डाला
अपने और अपने परिवार के जिस स्वार्थ की खातिर
उन्होंने यह सब किया अपने पूरे जीवन भर
वो परिवार तहस-नहस होने की हालत में है अब..!!
अरे मैं तो अपनी सात पुश्तों का इंतजाम करके आया था...
और यहाँ तो एक पुश्त भी सुखी नहीं है....!!
मेरे दोस्त....हराम का वैभव थोड़े दिनों का वैभव भले ही दे दे
लंबी पारी में हरामखोरी बदनामी ही प्रदान करती है....!!
इसलिए ओ मेरे दोस्त.....
जिंदगी चूँकि कभी किसी को दुबारा नहीं मिलती
सोचने भर के लिए भी नहीं.....
इसलिए तूने अपने लिए जो रास्ता चुना है
जो सिर्फ तेरे और तेरे परिवार के पेट और वासना के वास्ते है
उस पर कभी इक पल भर के लिए विचार कर ना....!!
सच बताता हूँ...तेरे मन से एक बहुत बड़ा बोझ उतर जाएगा
तुझे सचमुच का रास्ता भी मिल जाएगा....
मन की शान्ति,जिससे तू वंचित है सदियों से सदा
तुझे वो भी सदा-सदा-सदा के लिए मिल जायेगी.....
बस इक बार....ज़रा तू रास्ता तो बदल कर देख.....!!!!

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

अब तो कुछ बोल ओ स्त्री.....!!






उसके लिए......
जो बरसों से कुछ बोली नहीं है......
जो बस अपने पति....
अपने बच्चों के लिए जीती है....
जो उससे ज्यादा कभी सोचती भी नहीं....
उसकी चिंता के दायरे में बस उसका परिवार है....
और बाकी सब कुछ बिखरा जा रहा है....
उसकी गैरमौजूदगी में.....
अगर वो बोले....
अगर वो सामने आये....
तो बदल सकता है बहुत कुछ.....
क्यूंकि वो सिर्फ आधी आबादी नहीं है..!!
वो आने वाली नयी आबादी का स्त्रोत है....
वो आदि है.....वो अंत है......
फिर भी उसके भरम का कोई नहीं अंत है.....!!
अगर वो अपने इस भरम से बाहर निकल सके....
अगर वो अपने आँचल को क्षतिज तक फैला दे
तो ढंक जाए आकाश...ढँक जाए अनंत.....
और वो सब घट जाए,जो नहीं घटा है अब तक....
आदमी की फितरत बदल जाए....
धरती की सूरत बदल जाए....!!

अब तो कुछ बोल ओ स्त्री......!!

रविवार, 12 फ़रवरी 2012

स्त्रियाँ ही तय करती हैं बहुत कुछ,


दरअसल स्त्रियाँ ही तय करती हैं बहुत कुछ,
मगर वो सोचती ही नहीं कि उन्हें तय करना चाहिए कुछ....
अगर स्त्री सचमुच अगर तय कर ले कि ये दुनिया बदलनी है,
तो सचमुच बदला जा सकता है...सबका-सब...सब कुछ
मगर स्त्री बरसों से इस धोखे में है,
कि वो कमजोर है बहुत
और कुछ भी बदल नहीं सकती वो
स्त्री अपनी ताकत का अंदाजा
देवियों के अनेक रूपों को देखकर भी,
जिनकी पूजा किया करती हैं वो रोज ब रोज,
कभी कर नहीं पाती खुद की गरिमा का अहसास...
और रोज-ब-रोज सजती-संवरती है पुरुष के लिए
और इस तरह बजाय अपनी ताकत के
वो देती हैं अपनी मादकता का अहसास...
अगर संसार की सारी स्त्रियाँ या कुछ ही स्त्रियाँ
सिर्फ एक क्षण को भी यह सोच लें
कि वो रसीली-छबीली या सेक्सी ना होकर
एक अहसास भी हैं मानवता के बदलाव का
कोमलता के साथ-साथ संवेदना की गहराई का...
तो दुनिया बदल सकती है एकदम से
पता है कितने समय में...??
बस एक पल में.....!!

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

इस गुजरते हुए वक्त को देख.........!!


इस गुजरते हुए वक्त को देख
और अपने कीमती जीवन को जाया होते हुए देख !
कोई निम्नतम-सी कसौटी को ही तू चुन,
और इस कसौटी पर खुद को ईमानदारी से परख !
जिस तरह यह वक्त गुजर जाएगा
उसी तरह पागल तू भी वापस नहीं आएगा....!!
पगले,अपनी असीम ताकत को पहचान
इस तरह बेचारगी को अपने भीतर मत पैदा कर
हालात किसी भी काल बहुत अनुकूल नहीं हुए कभी
कभी किसी के लिए भी नहीं..
सभी अपनी-अपनी लड़ाईयां इसी तरह लड़ा करते रहे हैं ओ पगले
फर्क बस इतना कि कोई अपने लिए,कोई सबके लिए !
तूने अपने जीवन को यह कैसा बना रखा है ओ मूर्ख...?
जीता तो है तू खुद के लिए,और बातें करता है बड़ी-बड़ी !
इस तरह की निंदा-आलोचना से क्या होगा....
सबसे पहले तुझे खुद को ही बदलना होगा
सबको उपदेश देने से पहले तू खुद के बारे में सोच...
सड़क पार आकर आम जनता के लिए जी....
तब यह धरती तेरी यह आकाश तेरा ही होगा...
अगर इस राह में मर भी गया तू
तो बच्चे-बच्चे की जुबान पर नाम तेरा ही होगा...!
मादरे-वतन की मिटटी से कभी गद्दारी मत कर-मत कर-मत कर
ज़िंदा अगर है तो आदमियत की मुखालिफत मत कर
सिर्फ कमा-खाकर अपने और अपने बच्चों के लिए जीना है फिर
अपनी खोल-भर में सिमटा रह ना,बड़ी-बड़ी बातें मत कर
तेरे वतन को तुझसे कभी कोई उम्मीद रत्ती भर भी नहीं रे मूर्ख !
तू अभी की अभी मर जा,नमक-हलाली की बातें मत कर...!!
(कोई इन शब्दों को खुद पर ना ले,इन शब्दों में जो गुजारिश है,वो सिर्फ खुद के लिए है,इतना पढ़-भर लेने के लिए धन्यवाद !!)

रविवार, 5 फ़रवरी 2012

राजघाट चले जाना,बिड़ला हाऊस मत जाना मेरे बेटे....!!

राजघाट चले जाना,बिड़ला हाऊस मत जाना मेरे बेटे....!!


दिल्ली आये हो मेरे बेटे ?
तो मेरी समाधि तो देखने का मन तो होगा ही !
रिंग रोड पर एक शांत और सुरम्य जगह बनायी गयी है मेरी समाधि के लिए 
बहुत विशाल और बहुत हरितिमा वाली जगह है वो मेरे बेटे !
और हजारों लोग आया करते हैं वहाँ मेरी समाधि पर मत्था टेकने 
उस जगह का उससे पहले का कोई इतिहास नहीं है मेरे बेटे 
सिवाय इसके कि वो यमुना के किनारे फैली एक खाली भूमि थी
मैंने सोचा भी ना कभी कि इस जगह पर कभी मैं लिटाया जाउंगा..!
और अब जब रोज आते हुए हजारों लोगों को यहाँ देखता हूँ तो पाता हूँ कि
कोई सवाल ही नहीं उठता किसी के मन में कि मैं क्यूँ मारा गया
मुहसे जुडी किसी जगह पर मुझे लिटाया जाता तो शायद यह सवाल उठता भी !
मगर राजघाट ने मेरी ह्त्या को गौण कर मुझे शहीद मात्र बना दिया है !
और मेरे मरने के कारणों पर गोबर लेप दिया है मेरे बेटे !
जो,अगर तुम बिड़ला हाऊस गए,तो वो प्रश्न उठ सकते हैं तुम्हारे मन में !
मैं क्यूँ मारा गया,किस तरह मारा गया ??
समय के साथ ये सवाल अँधेरे में गुम हो गए हैं कहीं
उत्तर की अभिलाषा तो व्यर्थ ही है !
मगर मेरे बेटे बिड़ला हाऊस में मेरे निशाँ देखकर
तुम खुद को रोक नहीं पाओगे,और
हर किसी को निरुत्तर पाकर खुद भी व्यथित हो जाओगे !!
मगर अब यह जो वक्त चल रहा है मेरे बेटे,यह उतना ही फिजूल है,
जितनी फिजूल हो बन गयी है मेरी मौत मेरे वतन की आजादी के बाद !
अब यहाँ ,मेरा हत्यारा बताता है कि उसने मुझे क्यूँ मारा
और उसके तो प्रशंसा के कसीदे भी पढ़े जाने लगे हैं अब !
हर कोई उसके तर्कों से अभिभूत होने लगा है अब
कि मैंने अपने जीवन के अंत में कुछ खास लोगों के सोचे गए
विचारों के अनुसार ना चल कर बड़ी भयंकर गलती की !!
तीस सालों तक छोटे-छोटे पग चल कर जिस देश की आत्मा को मैंने जगाया
अपने नाजुक हथियारों के बल पर लोगों अपने बल पर खड़ा होना सिखाया !
अगर उस देश के कल के पैदा होने वाले ये कम-अक्ल बच्चे
मुझसे मेरे कामों का हिसाब मांगे कि मैंने ऐसा क्यूँ किया-वैसा क्यूँ किया !
तो मैं किस-किसको क्या जवाब दूं मेरे बच्चे
हर आदमी अपना इतिहास खुद लिखा करता है मेरे बच्चे
और हर आदमी से गलतियां भी बेशक हुआ ही करती हैं
मुझसे सदा यह गलतियां होती रहीं शायद कि
कि मैं सदा वतन को एक सूत्र में पिरोने की कोशिश करता रहा !
जो एक-दुसरे के खून के प्यासी दो कौमों को कभी पसंद नहीं थी
मैं सदा अपने प्यारे वतन के हित के बारे में सोचता रहा
और सदा अपनी-अपनी कौम के हित के बारे में सोचते रहे और तो और
उनके नुमाइंदे अपनी-अपनी गद्दी के हित की बाबत सोचते रहे
अगर मेरा सोचना इतना गलत भी था गलती से भी अगर
तो बातचीत करते ना मुझसे....
अगर इतना ही हुनर था मेरे हत्यारे में तो वो खुद ही देश आजाद करा लेता...!!
मगर मेरी ह्त्या का का अर्थ तो यही हुआ ना
कि मुझसे बातचीत के उनके सारे तर्क भोथरे ही हुए होंगे !
मुझे मारा गया किसी और ही कारणवश मेरे बच्चे
और बिड़ला हाऊस में यही सवाल फिर से उठा सकती है
मुझपर चली हुई उस हत्यारे की आखिरी गोली
इसलिए मेरी तुमसे विनम्र राय है मेरे बेटे
कि राजघाट तो चले जाना मगर बिड़ला हाऊस मत जाना मेरे बेटे....!!

अगर फेसबुक को एक मंच ही मान लो तो.....!!

अगर फेसबुक को एक मंच ही मान लो तो.....!!
बहुत सारे लोग जुड़ चुकें हैं ना इस मंच से 
मगर इस तरह जुड़ भी जाने से होगा तो क्या होगा 
दो-चार-सौ या पांच हजार दोस्त बना लेने से भी क्या होगा !
इस जगह पर आने का आखिर मतलब है हम सबके लिए 
अपने दोस्तों के लाईक और टिप्पणियाँ पाकर खुश हो जाना ??
और फिर उन्हीं दोस्तों के स्टेटस को लाईक करना या टिप्पणी कर देना !!
दोस्तों हर चीज़ के कुछ सीमित अर्थ हुआ करते हैं और असीमित भी
और वही तय करते हैं हमारी की हुई चीज़ों के मायने !
और हम क्या मायने तय करना चाहते हैं,वह तो हम ही जाने !
इस जगह पर तो ऐसा कोई मायना दिखाई ही नहीं पड़ता !
अगर फेसबुक एक मंच है तो फिर दोस्तों ऐसा क्यूँ है कि
इसीके सहारे उलट चुके हैं कई शासन हमारे ही कहीं आस-पास !!
और हम इंतज़ार ही किये जा रहे हैं किसी महामानव या महापुरुष का !!
यह कौन सा "अभेद" है जो हमें उठने नहीं देता...
हम खड़े नहीं हो पाते खुद के पैरों के ऊपर !!
हमारा वास्तविक गुमान कहाँ खो गया है भला... ?
कि महज निजी सुख के व्यभिचार में खोये हुए हम...
सपनों में भी शायद रति-क्रिया में रत रहते हों शायद !!
मगर,अगर ऐसा ही है तो यह जान लें दोस्तों
कहीं भी,कुछ भी,रत्ती भर भी कुछ नहीं बदलने वाला हमारे आसपास
सिर्फ शासन के लोग भर बदल जायेंगे...
हम खुद तो सियार और लोमडी हैं
बेतरह चालाक-घमंडी और साथ ही आत्म-मुग्ध भी
तो चुन-चुन कर लाते हैं हम एक-से-बढ़कर-एक भेड़ियों को !!
दोस्तों,सिर्फ अच्छे लोग ही अच्छे लोगों को चुन कर ला सकते हैं !!
और हमसे से अच्छा कौन है,क्या मैं ?क्या आप ?क्या वो ?क्या वो-वो ??
कौन से क़ानून का पालन करते हैं हममें से कोई भी "हम" भला ?
और कौन-सी नैतिक-शिक्षा ही दे पा रहे हैं हम अपने बच्चों को भी भला ?
जब पतित होना ही सिखाते हैं हम अपने ही वंशजों को
तो कौन सा बदलाव लाना चाहते हैं हम अपने देश में-अपने तंत्र में....!!
दोस्तों,अगर बदलाव होगा तो सबसे पहले खुद में होगा,खुद से होगा
वगरना भेडिये ही आयेंगे और भेडिये ही जायेंगे
अंतर कहीं भी,कुछ भी नहीं पडेगा....
भेड़ियों के तंत्र में सिर्फ जमातें बदला करती हैं, गुण नहीं !!
अगर हम सचमुच कुछ बदलना ही चाहते हैं
तो खुद के देश में रहने का आचरण सुधारें...
अपने भीतर तक का अंतरतम सुधारें....
जब खुद की अंतरात्मा सच्ची हो
तो उस सच्चाई की खुशबू दूर-दूर तलक जाती है !
और जब लोग अच्छे हों सच्चे हों...
तब कुछ बदलने को आवश्यकता ही नहीं होती...
अच्छे लोगों का भीतरी दबाव प्रतिनिधियों को कुछ गलत करने ही नहीं देता
मगर जहां जनता भी चोर हो
तो सिपाही भी महाचोर ही होने ठहरे ना...!!
इस कथन के आप चाहे जो भी अर्थ निकाल लो...
मगर अगर कुछ बदलेगा तो वह खुद के बदलने से ही बदलेगा !!
फेसबुक पर लाईक करने या टिपियाने से नहीं बदलेगा
मत लाईक करो बेशक मेरी किसी बात को...
मत आज से वादा कर लो अगर अपने-आप से
कि वतन की आबरू के लिए कुछ भी करने को तैयार हो
तो फेसबुक में हम सबके होने का वास्तविक अर्थ निकल पायेगा...!!

आ...अब हम सब मिलकर अपने वतन की किस्मत को बदल दें...!!


अरे ओ लालची पागल इंसान !
देख उधर उत्तर-पूर्व में तेरा पडोसी हो रहा है महान
जिससे अपनी भूमि वापस लेने की खायी थी कसमें
अब उससे आँख मिलाना भी नहीं है तेरे बस में !
सिर्फ अपना घर और तिजोरी भरने में मशरूफ तू
क्या तुझमें गैरत नाम की कोई चीज़ बची भी है,
कि देश के एक अदने से आम इंसान से तू आँख मिला भी सके ??
अबे कितना खायेगा बे तू कितना खायेगा बे ?
अबे मर जाएगा...अबे मर जाएगा !!
अबे कभी इस तरह तो सोच कर देखा कर कि
जब खुद की निजी ताकत और शानो-शौकत से
मिलती है तुझको इतनी ज्यादा खुशी
तब समूचे देश की तरक्की और महानता से
हरेक देशवासी को मिलेगी कितनी अपार खुशी !!
अगर तू जरा सा भी अपने लालच को विराम दे सके अगर
तेरे वतन को बहुत राहत मिल जायेगी अरे ओ कमीने रहबर !!
इन्हें गाली नहीं,अपने आने वाले कल का आगाज समझ
कि मुझे मार भी देगा तू, तो ये गालियाँ गली-गली उठने वाली हैं
तू ये समझ ले कि अब बस तेरी शामत आने ही वाली है !!
अरे अंधे ,आँख खोल और देख कि
चारों तरफ चीन-चीन-चीन की आवाजें आ रही हैं !
और यहाँ भारत में तेरे कारनामों से
देश की इज्ज़त की अर्थी उठी जा रही है...!!
तुझे देश की अर्थी निकालने के लिए ही पैदा किया था
तेरे माँ-बाप ने...??
भारतमाता की आबरू लूटने के लिए ही आज़ाद करवाया था
इस वतन को तेरे बाप के बाप के बाप ने....??
तेरे बाप के बाप को मरे तो अभी ज्यादा वक्त भी नहीं बीता
अरे मेरे भाई ये तूने क्या कर दित्ता....क्या कर दित्ता....!!??
शाम को जो लौट कर घर वापस आ जाए, उसे भूला नहीं कहते है !
वक्त पर जो संभल जाए ,उसे बड़े माफ कर देते हैं !!
तू सच जान मेरे अनाम-अनजान भाई
तेरी-मेरी भारतमाता का दिल बहुत बड़ा है !
और तेरे सामने भी अभी रास्ता बहुत लंबा पड़ा है !!
अब भी जाग जाए अगर तू अगर ओ भले इंसान
भारत के भाग ही जाग जायेंगे, बन जाएगा फिर ये महान !!
बहुत दिनों तक अपने सपनों को ढो लिया रे ओ पागल
तेरे सामने हो रहा है तेरे ही वतन का मातम
आ...गले मिल...स्वार्थों को एक तरफ रख
आ... हम सब अपने सारे स्वार्थों को अब ताक पर धर दें....
आ...अब हम सब मिलकर अपने वतन की किस्मत को बदल दें...!!

शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

तकलीफ में जीना बहुत मुश्किल होता है, होता है ना ?


तकलीफ में जीना बहुत मुश्किल होता है,
होता है ना ?
और जब हम यह जानते हों कि
इस तकलीफ को हम शायद मिटा भी नहीं सकते
तब ??
अपने निजी जीवन की तकलीफों को तो
अक्सर मिटा ही लेते हैं हम
कभी आसानी से तो कभी कठिनाईयों से
मगर अपने आस-पास और दूर की तकलीफों का क्या करें
जिनके बारे में रोज पढते हैं और देखते हैं !
हमारे ही आसपास बहुत सारे लुटेरे रहते हैं
जो तरह-तरह से हमारे वतन को लूटते हैं
और बेरहम हैं वो इतने कि
खुद के पकडे जाने के भय से
किसी की ह्त्या भी कर देते हैं,या करवा देते हैं !!
हमारे आस-पास हमारे राज्य या देश का लूटा जाना
कोई कुछ पैसों-भर का खेल नहीं है दोस्तों
यह खेल है करोडों का,अरबों का,खरबों का
मगर यह खेल कुल इतना भर भी नहीं दोस्तों
यह प्रश्न का वतन की आबरू का
इसके माथे का शर्म से झुक जाने का
और उसके बावजूद भी हमारे सत्तानशीनों की बेहयाई का
और अपनी तमाम करतूतों के बावजूद के जा रही थेथरई का !!
ऐसा क्यूँ है दोस्तों कि हमारे वतन में जो भी,जहां भी
सत्ता में है,मद में चूर है
और मादरे-वतन की इज्ज़त का उसे कुछ होश ही नहीं है !!
ऐसा क्यूँ है दोस्तों कि यहाँ हर ताकतवर
कमजोरों पर जुल्म-ही-जुल्म ढाने को तत्पर है
और किसी भी मानवीयता का उसमें लेश मात्र भी नहीं है.....
इस तकलीफ के साथ मुश्किल ही नहीं,असंभव है दोस्तों
और अपनी या हम सबकी इस तकलीफ का क्या करना है
आईये हम सब मिलकर सोचते हैं
और सोचकर कुछ कर गुजरते हैं क्योंकि
तकलीफ में जीना बहुत मुश्किल होता है,
होता है ना ?

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

तन्हा ही रहता है,तन्हा ही रहना चाहता है


कोई बहुत चुप्पा-सा है मेरे भीतर
मगर बहुत शोर क्यूँ हुआ करता है फिर ?
एक सिसकी-सी लेकर चुप हो जाता है वो !
एक बेआवाज़-सी आह भरता है वो !
और हमेशा मेरे भीतर तन्हा ही रहता है,
और तन्हा ही रहना चाहता है वो !
जिन्दगी में ये जो चारों तरफ शोर है बहुत,
और आशंकाएं हैं ये जो कितनी ही.....!
धरती पे यह जो प्राकृतिक ख़ूबसूरती है,
और उसके बीच आदम की यह बदसूरती !
और इसके बावजूद खुद के सभ्य होने का दंभ !!
कहना चाहता है वो इस सब पर कुछ,
मगर हमेशा हिचक जाता है...!
तन्हा है और तन्हा रहना चाहता है !!
मगर एक बात बताऊँ यार ?
ये रोता है अक्सर जार-जार !
जिसे सुन नहीं पाता अन्य दूसरा कोई,
और मैं भी सुनकर चुप ही रह जाता हूँ,
और कहो कि चुप्पा हो जाता हूँ  !!
भाषा में कहो तो कहने के खतरे बहुत हैं...
क्योंकि खुद का सामना करने से लोग डरते बहुत हैं !
इसीलिए कोई सच,जो खुद के बारे में कहा जाता है ,
काटने को दौड़ता है आदम,गोया तुम्हें खा जाता है !!
मेरा दिल है शायद वो,या कि कोई और ही हो,
तन्हा ही रहता है,तन्हा ही रहना चाहता है !!
किसी से कोई भी वाजिब बात भी कहो...
तो उसको वो न जाने क्यूँ कटु ही लगती है !
उसकी रूह जाने कहाँ गयी हुई लगती है ?
बस इसी एक अहंकार के कारण दोस्तों...
दुनिया में तरह-तरह की जंग छिड़ी हुई लगती है !
आदम अपना दंभ अपना अहंकार कभी ना मेट पाए शायद,
इसलिए मेरे भीतर का कोई "वो",
तन्हा ही रहता है और तन्हा ही रहना चाहता है !!