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मंगलवार, 27 सितंबर 2011

हे दुर्गा नमो नमः महेश्वरी.....

हे दुर्गा नमो नमः महेश्वरी 

हे काली,महाकाली दुर्गेस्वरी !
तुझको नमन करता हुआ 
तेरा आह्वान करता हुआ 
करता हूँ मैं करबद्ध प्रार्थना 
इस जग के सारे असुरों का 
फिर से संहार कर दे ओ माँ !!
मेरे बस में है ये ना 
किसी और के बस में ही है 
ये तो बस अब ओ माँ 
केवल तेरे बस में ही है 
धरती के संग खेलने वालों का 
मानवता का संहार करने वालों का 
कमजोरों का रक्त पीने वालों का 
बेबसों का चीर हरने वालों का 
वंचितों की पीर बढाने वालों का 
हर इक ऐसे असुर का अब 
सिर्फ तुम ही कर सकती हो दमन
या फिर कुछ ऐसा कर दो कि 
सच्चे लोगों में शक्ति भर दो
जो इन सबका नाश कर सके 
ऐसे लोगों को धरती में भर दो  
हे दुर्गा नमो नमः महेश्वरी 
हे काली,महाकाली दुर्गेस्वरी !!

शनिवार, 24 सितंबर 2011

हैप्पी बर्थ डे आल ऑफ़ टू यू


मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
हैप्पी बर्थ डे आल ऑफ़ टू यू
दिन बदलते हैं....
कुछ बदलता सा दिखाई देता है....
मगर कुछ बदलता सा नहीं होता...
बस थोड़ा सा हम बदल जाते हैं....
एक दिन और बढ़ जाते हैं....
एक कदम और मृत्यु की और ले जाते हैं 
दिन बदलते जाते हैं...
और हर एक दिन के साथ 
बढ़ा लेते हैं हम 
अपनी कुछ और जिम्मेवारियां....
सर पर बोझ बढाते जाते हैं 
और खुद ही हर दिन 
अपने-आप पर बोझ बनते जाते हैं 
बदलता है ना बहुत कुछ...
हमारा हंसता हुआ चेहरा
उदासी में परिणत हो जाता है 
इस उदासी के बीच 
घर की जिम्मेवारियों के बीच 
किसी एक दिन या कुछेक दिन 
हम हंस लिया करते हैं 
और हो जाया करते हैं बाग़-बाग़ 
ढेर सारी बधाईयाँ पाकर
खुशह हो जाया करते हैं...
जब बहुत सारे लोग करते हैं विश हमें
जन्मदिन तो है ही सबका कोई ना कोई दिन 
मगर हर दिन को खुशियों से जी लें 
अपनी समस्त जिम्मेवारियों के बावजूद 
अपने तमाम दुखों और पीडाओं के बाद भी 
तो दोस्तों...इस जीवन का कोई अर्थ है...
है ना दोस्तों मेरे प्यारे दोस्तों....
तो आज मेरे जन्मदिन से 
आप भी अपने-आप से यह वादा करो
कि आप सब खुश रहो हमेशा 
अपने समस्त दुखों-पीडाओं के साथ भी....
ये जो कर्मफल हैं हमारे....
उन्हें नहीं मेट सकता कोई भी....
तो फिर दुखी होना 
जीवन का अपमान करना ही तो है....
आईये हम ख़ुशी मनाये अपने होने की....
आईये मैं देता हूँ.....
आपको अपने आने वाले जन्मदिवस 
की अनंत-असीम शुभकामनाएं....!!   

शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......


बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......
आसमां की किस हद को छू पायेगा तू....
आदमी के जाल से कब तक बच पायेगा तू.....
बोल रे परिंदे....कहाँ जाएगा तू....

तेरे घर तो अब दूर होने लगे हैं तुझसे 
शहर के बसेरे तो खोने लगे हैं तुझसे 
अब तो लोगों की जूठन भर ही खा पायेगा तू 
बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......

दिन भर चिचियाने की आवाजें आती थी सबको 
मीठी-मीठी बोली हर क्षण लुभाती थी सबको 
आदमी का संग-साथ कब भूल पायेगा तू....
बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......

बस थोड़े से दिन हैं तेरे,अब वो भी गिन ले तू 
चंद साँसे बस बची हैं,जी भरके उनको चुन ले तू.
फिर वापस इस धरती पर नहीं आ पायेगा तू....
बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......

बुधवार, 21 सितंबर 2011

जो तेरा है वो तेरा तो नहीं है.....!!!



जो तेरा है वो तेरा तो नहीं है,
जो मेरा है वो मेरा तो नहीं है !
जो जितना अच्छा दिखता है 
देखो,वो उतना भला तो नहीं है!
ठीक है,वो चारागर होगा मगर 
बस इतने से वो खुदा तो नहीं है !
नजदीक से देखने से लगता है,
कहीं वो मुझसे जुदा तो नहीं है !
रह-रह कर कुछ टीसता-सा है ,
कहीं मुझको कुछ हुआ तो नहीं है !
कुछ जो भी यहाँ पर गहरा-सा है,
कभी हर्फों में वो बयाँ तो नहीं है !
हर जगह वो मुझसे छुपता है 
कहीं वो मेरा राजदां तो नहीं है !
हर पल बस तेरा नाम लेता हूँ,
ओ मेरे खुदा रे कहाँ तू नहीं है !
हर हद तक जाकर तुझको खोजा 
कहीं तू मेरे दरमियाँ तो नहीं है !
हर्फों का शोर ये समझ ना आये 
कहीं तू हर्फों में ही निहां तो नहीं है !!

रविवार, 11 सितंबर 2011

तेरी रग-रग का हर निशाँ हम पहचानते हैं !!

तेरे आँगन में फाखते चहकें 
उनकी खुशबू से तेरा घर महके !
रोशनी से सराबोर रहे तू हमदम 
तेरे रूबरू हो जाए तीरगी बेदम !
जगमगाती रहें तेरी सारी रातें
याद आती रहें तुझे प्यारी बातें !
खुश रहे तू सदा ओ मेरे हमकदम !
दूर रहकर भी ये दुआ करते हैं हम !
रूह में तेरी है गहरी बातों का आलम 
आँख से तेरी दिखाई देता है हरदम !
००००००००००००००००००००००००००० 
०००००००००००००००००००००००००००
कैसे जीता है तू पल-पल,ये हम जानते हैं 
तेरी खुशियाँ और तेरे गम,हम पहचानते हैं !!
इक ज़माने से तू जिस तन्हाई में जीता है 
तेरी रग-रग का हर निशाँ हम पहचानते हैं !!
जब भी आ जाते हैं तेरी आँख में दो आंसू 
मुहं फिरा कर रोता है तू ये हम जानते हैं !!
याद आ जाता है जब कोई बीता हुआ पल 
तेरे चहरे का हर बदलता रंग हम जानते हैं !!
मेरी आँखों में आँख दाल कर तू हंस दे ज़रा 
होंठ प्यासे हैं तब्बसुम को तेरे,हम जानते हैं !! 

शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

क्या धमाके करने वाले किसी भी कोख से जन्म नहीं लेते !!??

कुछ धमाके होते हैं और 
उन धमाकों के साथ 
कुछ जिंदगियां तमाम....
उन धमाकों में है सन्देश 
किसी तरह की कायरता का 
एक अमानुषिक बर्बरता का 
जिसे धमाके करने वाले 
कहते हैं अपनी ताकत 
जिससे करते हैं वो 
सत्ता के खिलाफ जंग
जिसे कहते हैं वो 
कि यह ज़ुल्म के खिलाफ
जो भी हो मगर उनकी इस 
ताकत या कायरता का शिकार 
बनते हैं कुछ मासूम लोग 
बच्चे-बूढ़े और स्त्रियाँ भी 
जहां होते हैं धमाके 
वहां बिखर जाता है खून
बिछ जाती हैं लाशें और 
तड़पते हैं जीवित शरीर
जिसे देखकर हो जाता है 
हर कोई कातर-निर्विकल्प 
शून्य और संज्ञा रहित.....
और मर्मान्तक तक कहीं 
अतल गहरे में रोते हैं हम....
जिसे कहते हैं हम मानवता 
हम सब किसी ना किसी 
कोख से जन्म लेते हैं.....
क्या धमाके करने वाले 
किसी भी कोख से जन्म नहीं लेते !!??