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सोमवार, 4 जून 2012

कुछ वो,जो आज लिखा....!!

गरम होती हुई धरती
क्या कह रही है,
क्या तुम यह
समझ भी पा रहे हो....??
धरती कह रही है कि....
संभल जाओ....
सुधर जाओ....
बदल जाओ.....
वर्ना....
मर जाओगे...
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लोग कहते हैं कि
पीछे नहीं लौटा जा सकता
और अगर आगे खाई हो तो...??
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पता नहीं मुझे क्यूँ ऐसा लगता है
कि किसी को कुछ भी समझाते वक्त
हम खुद भी नहीं जान रहे होते
अपने द्वारा कही जा रही बात का मर्म
वरना दूसरों को जो कुछ हम समझाते हैं
खुद वो कभी क्यूँ नहीं करते....??
आप भी सोच कर देखें ना....खुद पर !!
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एक मजेदार बात बताऊँ आपको ??
कोई व्यापारी किसी से उधार माल लेता है
और जब उसको चुकाने का समय आता है
तब वो अपने महाजन को टाल-मटोल करता हुआ
यह कहता है कि साहब आपका माल बहुत महँगा था
यह बड़ी अजीब है कि माल खरीदते वक्त
उस मासूम को नहीं पता था कि माल महँगा है.....!!
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हम किसी को किसी भी विषय पर धोखा क्यूँ देते हैं.....
क्या आदमी में आत्मा नाम की चीज़ का कोई मोल नहीं है??
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एक था देश....वहां शासन करने वाले लोगों का पेट इतना बड़ा था....इतना बड़ा था....इतना बड़ा था कि वो कूएँ खा जाते थे,तालाब खा जाते थे,सड़क खा जाते थे,पुल खा जाते थे,लाखों बोरियां अनाज खा जाते थे,फाईलें खा जाते थे,बिल्डिंगे खा जाते थे,बस-ट्रक,रेल,जहाज,टॉप,पनडुब्बी,हथियार सभी का सभी कुछ खा जाते थे.....सूची को विस्तार ना देते हुए बस इतना ही कहूंगा कि धरती पर ऐसा कुछ नहीं था जो उस देश के शासनकर्ता नहीं खा सकते थे फिर भी उनलोगों ने राक्षस नाम की एक ऐसी जाति का इजाद किया हुआ था,जो इंसान की शत्रु थी और धरती पर प्रलय मचाती थी,मगर सच तो यह था कि धरती के सारे मनुष्य अगर राक्षस होते तो वो इतना कुछ खाकर नहीं पचा सकते थे,जितना कि इस मनुष्य नाम के भारतवंशी लोगों ने खाकर पचाया हुआ था.....!!आपका क्या ख्याल है मित्रों...??
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ना जाने कितने सूरज मुझमें पिघलते हैं
कहकशां के सारे रंग मुझमें ही बदलते हैं !
किसी का दिल दुखाकर चैन नहीं ले पाते
हम अपने आप ही शर्मो-हया में जलते हैं !
किसी की आवाज़ कानों को सुनाई देती है
न जाने रंग कितने मुझमें कपडे बदलते हैं !
जो घटता है दिल में,किसी से कहा नहीं जाता
और रातों में बिस्तर पे हम करवटें बदलते हैं !
किसी के दर्द से अक्सर तड़प कर रह जाते हैं
कितने लोगों के दर्द आकर मुझमें बसा करते हैं !
हरेक लम्हा किसी धोखे की तरह गुजर जाता है
हरेक लम्हें को पकड़ने की कोशिशें किया करते हैं !
समय की चाप कभी किसी को भी सुनाई नहीं देती
समय के मारे हम कितना शोर-शराबा किया करते हैं !
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