अपनी तो यह आदत है अ दोस्त
अपन किसी से नफरत नहीं करते !
बेकार की बात है गिले-शिकवे
बेकार की बातें हम नहीं करते !
दिल में गहराई बहुत है लेकिन
बहुत ज्यादा उल्फत नहीं करते !
जिन्दगी प्यार से गुजारते है पर
अपने प्यार का गुमां नहीं करते !
किसी से खलिश हो जाए न कहीं
इतनी शिकायतें हम नहीं करते !
हमसे कोई रूठता नहीं है अ दोस्त
हम ऐसा कोई करम नहीं करते !
अपने भीतर गुण हैं बहुत सारे
अपन ऐसा कोई भरम नहीं करते !
तुझे आना हो आ,तुझे जाना हो जा
खुशामद किसी की हम नहीं करते !
=============================
कितना लाइक करते हैं हम
अच्छी-अच्छी बातों को
और शेयर भी करते हैं उन्हें....
हमें पता है कि
अच्छी चीज़ें ही हमारे लिए बेहतर हैं....
फिर भी हम खुद को
अच्छा बनाने की कोशिश नहीं करते....!!
क्यों दोस्तों....??!!
==================================
कौन नहीं जानता है कि हम ज्यादा खा नहीं सकते...
मगर हम खाते जाते हैं
खाते जाते हैं....खाते जाते हैं....
हमारा घर एक संडास है....
तरह-तरह के फर्नीचरों का
तरह-तरह की अन्य चीज़ों का....
हमारी तिजोरी भी एक संडास ही है
जिसमें रखे हुए हैं हम अपना कचरा
और मजा यह कि हम उसे धन समझते हैं...
जिसे हम खा नहीं सकते....
पहन नहीं सकते
और ओढ़ भी नहीं सकते
उस धन को पता नहीं किससे-किससे छीन लाते हैं हम
तरह-तरह के तर्क से अपने धन को जायज ठहराते
और अपने कुकर्मों को छिपाते
हमने दरअसल खुद को संडास बना डाला है
और मजा यह कि
इसकी भी हमें खबर ही नहीं....!!
=========================
गरीब लोगों को भूख बड़ी लगती है...
भूखों को भूख लगना लाजिमी है....
अमीरों को भूख बड़ी लगती है....
गरीबों से कहीं बहुत-बहुत ज्यादा
लगता है उनकी तबियत बहुत ज्यादा खराब है....!!
===================================
काल चल रहा है हमारे साथ....
अगर उसकी भाषा हम समझ सकें तो.....
काल चल रहा है हमारे साथ.....
अगर उसकी चाल समझ सकें तो......
काल चल रहा है हमारे साथ.....
अगर उसका मिजाज हम परख सकें तो....
काल चल रहा है हमारे साथ.....
अगर उसकी रफ़्तार समझ सकें तो.....
काल चल रहा है हमारे साथ.....
अगर उसका एक अंश भी समझ पाने में समर्थ हों हम
तो बदल सकते हैं हम खुद को
भीतर से पूरा का पूरा....
.....सम्पूर्ण....!!
=======================================
एक फरियाद है सबसे.....
..............
..............
...............
................
................
..................
...................
.....................
.......................
सब अच्छे हो जाओ ना....!!
========================================
बिटियाओं पर मेरा स्नेह और आशीर्वाद सदा ही बेटों से ज्यादा है,ये दोनों बेटियां कहने को मेरी तो नहीं हैं,श्यामल सुमन जी की पोतियाँ है शायद,मगर मेरे मन की कहूँ तो दुनिया की सारी बिटियाओं के लिए मैं खुद इक क्षत्र छाया बन जाना चाहता हूँ,बेटियों को घर में देखकर एक सुखद आनंदपूर्ण अनुभूति होती है,आँख भर आती है अक्सर,कि उन्हें विदा करना है,जिन्हें रातों जग-जग कर पाला है,और पता नहीं क्या-क्या कुछ किया है जिनके लिए,बस यही मन में होता है,वो अपने भीतर की दौलत को पहचाने,अपने देश की,मिटटी की और विश्व की पहचान बने...अपने परिवार का गौरव बनें...बेटों ने कितना बदला है विश्व को,सो तो मैं देख चूका....अब सारा विश्वास,सारी आशा बेटियों पर ही बच गयी है....मेरी आशा निरर्थक ना जाए..हमारी बेटियां विश्व की सिरमौर बने....और मैं कह सकूँ....कि हाँ ये मेरी बेटियां हैं....कि सारी बेटियाँ मेरी ही बेटियाँ हैं....!!
======================================================================================================
कोई भी उम्मीद नज़र नहीं आती
तहजीब हमको अगर नहीं आती !
यूँ तो आती है बहुत शर्म हमको
खुद अपने आप से पर नहीं आती !
दूर से चली जाती है हमें देखकर
कोई ख़ुशी हमारे इधर नहीं आती !
उसके वादों में इक उम्र गुजारी है
कहती है कि आयेंगे,पर नहीं आती !
जिन्दगी इतना उधम मचा रही है
मौत भी डरकर इधर नहीं आती !
दिन तो तरह-तरह से काट लेता हूँ
रात मगर कमबख्त काटी नहीं जाती !
==========================================
जिससे भी की है दोस्ती,वो मुझ जैसा ही लगा है
चाहा हर किसी को इतना,वो मुझ जैसा ही लगा है !
रास्ते में छोड़ गया है वो मुझे तो कोई बात नहीं
दोस्त का चुभोया हुआ खंजर खुद जैसा ही लगा है !
==============================
========
किसी का यूँ बीच सफ़र में छोड़ जाना अच्छा तो नहीं है
हर किसी को गाफिल का साथ भाये,ये लाजिम भी नहीं !
यूँ तो बन जाता हूँ मैं किसी की भी पंचायत में मुनसिब
पर किसी अपने के ही मुकद्दर में होना हाकिम भी नहीं !
============================== =========
कहते हैं टूटा हुआ तारा टूट कर कभी नहीं लौटा
फिर भी आदमी की आस रास्ता सजाये बैठती है !
रोज टूट जाता है कहीं ना कहीं कोई ना कोई दिल
आदमी की उम्मीद पर फिर भी दुनिया टिकती है !
============================== =========
अजीब सा बनाया है तुने इस आदम को ओ यारब
अपना काम भी करता है दूसरों पे अहसां करता हुआ !
बात तो करता है सबसे जीओ और जीने देने की मगर
दिखता है यह सबको मारता हुआ और खुद मरता हुआ !
============================== =========
दिल खोल कर कहना चाहता हूँ ओ यारब अब मुझे उठा भी ले
मुझे समझ ही नहीं आता यह आदम इतने धत्त्करम करता हुआ !
==============================================
कहीं भी कुछ भी हो जाए यह हमारी जिम्मेवारी नहीं है
और हम अगर कुछ कर भी ना पायें तो लाचारी नहीं है
कोई तड़पता हुआ हमारी आँख से सामने मर भी जाए,तो क्या हुआ
किसी स्त्री की इज्जत सरेआम लुट भी जाए तो क्या हुआ
अभी-अभी कोई गोली ही मार दे किसी को तो हम क्या करें
अभी कोई किसी को उठा कर ले जाए तो हम क्या करें
हम क्या करें अगर संसद में शोर-शराबा हो रहा होओ
हम क्या करें जब सब कुछ हमारा लुट-पिट रहा होओ
अभी-अभी हम भ्रष्टाचार पर चीखेंगे-चिल्लायेंगे
अभी-अभी हम किसी गीत पर झूमेंगे गायेंगे
अभी-अभी हम किसी एक चोर को गद्दी से हटायेंगे
अभी-अभी हम किसी दुसरे चोर की सरकार बनवायेंगे
बहुत कुछ घटने वाला है अभी हमारी आँखों के सामने
पूरा देश ही लुट जाने वाला है हमारी आँखों के सामने
अपने अहंकार के बात-बात पर हर किसी से लड़ने वाले हम
कभी एक क्षण भर के लिए भी यह नहीं सोच पाते कि
अपना यह लुटा-पिटा अहंकार और यह झूठी गैरत लिए
खुदा के घर वापस जाकर भी उसे क्या मुहं दिखायेंगे !!
=============================================
बहुत दिनों से चाहर रहा हूँ लिखना एक कविता
मगर पूरी ही नहीं हो पा रही है यह कविता....
यह कविता भूखे लोगों की है
बेबस और कमजोर लोगों की है
यह कविता मेहनतकश लोगों की है
यह कविता स्त्रियों और बच्चों की है
यह कविता तमाम असहायों की है
यह कविता पीड़ित मानवता की है
यह कविता लोगों की जीवंत अभीप्सा की है
कविता तो यह उपरोक्त लोगों की ही है
मगर अनचाहे ही यह कविता
कुछ दरिंदों की है,कुछ राक्षसों की भी
कुछ हरामियों की की है,कुछ कमीनों की भी
इंसानियत के दुश्मन कुछ समाजों की भी
धर्म के आडम्बर से भरे कुछ लोगों की भी
स्त्रियों और बच्चों का शोषण करने वालों की भी
और मानवता को शर्मसार करने वालों की भी
यह कविता कुछ अत्याचारियों की भी है और
कुछ अनंत धन-पशुओं और देह-भोगियों की भी है
मगर दोस्तों यह कविता मेरी-आपकी किसी भी नहीं है
क्योंकि हम तो यह कविता पढने-लिखने
फेसबुक पर लाईक और कमेन्ट करने वाले शरीफ लोग हैं
और कवितायें शरीफों की नहीं होती
इसलिए आईये ओ दोस्तों
हम कुछ बेहतर अगर नहीं कर सकते
खुद भी अगर बदल नहीं सकते
आज से हम भी हरामी और कमीने बन जाएँ
और कोई हम पर भी कुछ कविता लिख ही डाले....!!
===============================================
कहनी होती हैं बहुत सारी बातें
कहते-कहते रूप बदल जाता है !
खडा होता हूँ आईने के सामने
इकबारगी अक्श बदल जाता है !
कहना चाहूँ हूँ तुझसे कुछ,मगर
तेरे आगे लफ्ज़ फिसल जाता है !
हर बार तिरी तारीफ़ करता हूँ
हर बार कुछ और बदल जाता है !
रुकना तो बहुत चाहता है आदम
यहाँ से पर चला ही हर जाता है !
हर बार तेरे पा पकड़ता हूँ यारब
और हर बार तू मुकर जाता है !
तू भी इक किस्सा बन जायेगा "गाफिल"
बहुत तू यहाँ अपनी हेंकड़ी दिखाता है !
===================================
=====================================================
मुझसे बचकर रहना ओ तू प्यारे
मुझमें तो इक आग बसा करती है !
हल पल जो मुझमें बहती रहती है
अपनी कसौटी मुझे कसा करती है !
मैंने जब-जब तुझको देखा यारब
कोई लपट मुझमें निकला करती है !
मैं मांगू तो क्या मांगू तुझसे यारब
तेरी कमी धरती पर बहुत खलती है !
ऊपर जाकर भी तुझको देखूंगी मैं
मेरी मां मुझसे अक्सर कहा करती है !
मुझको लिखना कुछ अच्छा नहीं आता
दुनिया अच्छी है,इसको अच्छा कहती है !
================================
इन दिनों खुश बहुत रहता हूँ
इन दिनों मुझको गम बहुत हैं !
खुद से खुद को झेलने के लिए
इक खुद अकेले हम बहुत हैं !
खुद से हम क्या-क्या चाहते हैं
खुद से हमको जंग बहुत है !
आज करे क्यूँ,कल कर लेना
कुछ करने को जनम बहुत हैं !
क्या-क्या करना है आदम को
ये सोचने को आदम बहुत हैं !
धरती को हम खूब सोखेंगे
धरती में अभी दम बहुत है !!
==================================
सबके बीच भी तनहा हूँ,अजीब हूँ मैं
क्या-क्या बकता रहता हूँ अजीब हूँ मैं !!
कितने सवालों के घेरे में है ये आदम
उलटा उससे प्रश्न करता हूँ,अजीब हूँ मैं !!
सब लागों के सारे गम को खुद में भरकर
खुद ले लिपट कर रोता हूँ अजीब हूँ मैं !!
तुझे अक्सर देखा करता हूँ कुछ इस तरह
तुझको खुद में पाया करता हूँ अजीब हूँ मैं !!
खुद के साथ भी बहुत देर तक रह नहीं पाता
खुद को तनहा छोड़ जाता हूँ अजीब हूँ मैं !!
===========================================
बंद कराने वालों से पूछिये बंद करवाने का मजा
बंदी का मजा वो क्या ख़ाक समझेंगे
जो रोज कमाते हैं,रोज खाते हैं
यह बंदी अपने भीषण कार्य से प्रताड़ित लोगों को
एक दिन के लिए सुकून देने के लिए है
फिर भी ये साले ठेले-खोमचे वाले और कुली मजदूर
कमाने के लिए सड़क पर आ जाते हैं
जो बंद के आयोजनों का अपमान करते हैं
ऐसे मनहूस लोगों से नहीं चल सकता यह देश
जो देश की जनता के भले के लिए आयोजित बंदी के दिन भी
काम पर जाकर बंद का विद्रोह करते हैं
अरे विद्रोह ही करना है तो भूख से करो विद्रोह
मत खाओ एक दिन तो क्या हर्ज पड़ जाएगा
कोई आसमान तो नहीं ना टूट जाएगा !!
कोई एक दिन अस्पताल नहीं जा पाए तो क्या
लाखों बच्चे बसों में फंसे रह जाए तो क्या
तरह तरह के काम रुक भी जाएँ तो क्या
अरे यह बंद लोगों के द्वारा लोगों भले के लिए है
अब क्या है कि गेहूं के साथ घुन का पिसना ही ठहरा
जोर जबरदस्ती हो रही है तो होने दो
ट्रेन-बस-सवारी सब लेट हो रही है तो होने दो
बंद के चक्कर में चाहे कुछ भी हो जाए
उसमें लोगों का ही भला है
देश भीतर भी जाए तो इसमें ऐसा क्या बुरा है !
यह बंद बंद-कर्ताओं की आन है
यह बंद देश की आन-बान-शान और जान है
तो आओ ना मेरे प्यारे-प्यारे दोस्तों
सिर्फ आज ही भला क्यूँ ,हम सब मिलकर
भारत को हमेशा के लिए ही बंद करा दें....
इस देश की बची-खुची इज्जत को भी मिटटी में मिला दें...!!
===========================================
बंद ईलाज नहीं बल्कि खुद एक समस्या है
और ईलाज जनता खुद है....
अगर वो (यानी कि हम)
पूरी-की-पूरी ही सड़क पर निकल आये
अगर वो (यानी कि हम)
सम्मिलित रूप से अपनी ताकत
और अपना भय उस संस्था को दिखाएँ
जो दुर्भाग्य से खुद को सरकार तो समझती है
मगर उसके कर्तव्यों को पूरा नहीं करती
हममे से अगर अब भी एक-एक उठ कर खडा नहीं हुआ
तो घर में ही टी.वी. देखता कुरकुरे खाता रह जाएगा
बंद के आयोजनों को तस्वीरों में निहारता रहेगा
तो कभी नहीं होगा किसी का बंद सफल
अंततः सत्ताओं की नींद तब ही जागी है दोस्तों
जब निरीह लोगों या आम जनता ने सरेआम
उन पर हमला नहीं बोल दिया है....
और हम सिर्फ हल्ला बोल रहें हैं....!!
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अपन किसी से नफरत नहीं करते !
बेकार की बात है गिले-शिकवे
बेकार की बातें हम नहीं करते !
दिल में गहराई बहुत है लेकिन
बहुत ज्यादा उल्फत नहीं करते !
जिन्दगी प्यार से गुजारते है पर
अपने प्यार का गुमां नहीं करते !
किसी से खलिश हो जाए न कहीं
इतनी शिकायतें हम नहीं करते !
हमसे कोई रूठता नहीं है अ दोस्त
हम ऐसा कोई करम नहीं करते !
अपने भीतर गुण हैं बहुत सारे
अपन ऐसा कोई भरम नहीं करते !
तुझे आना हो आ,तुझे जाना हो जा
खुशामद किसी की हम नहीं करते !
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कितना लाइक करते हैं हम
अच्छी-अच्छी बातों को
और शेयर भी करते हैं उन्हें....
हमें पता है कि
अच्छी चीज़ें ही हमारे लिए बेहतर हैं....
फिर भी हम खुद को
अच्छा बनाने की कोशिश नहीं करते....!!
क्यों दोस्तों....??!!
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कौन नहीं जानता है कि हम ज्यादा खा नहीं सकते...
मगर हम खाते जाते हैं
खाते जाते हैं....खाते जाते हैं....
हमारा घर एक संडास है....
तरह-तरह के फर्नीचरों का
तरह-तरह की अन्य चीज़ों का....
हमारी तिजोरी भी एक संडास ही है
जिसमें रखे हुए हैं हम अपना कचरा
और मजा यह कि हम उसे धन समझते हैं...
जिसे हम खा नहीं सकते....
पहन नहीं सकते
और ओढ़ भी नहीं सकते
उस धन को पता नहीं किससे-किससे छीन लाते हैं हम
तरह-तरह के तर्क से अपने धन को जायज ठहराते
और अपने कुकर्मों को छिपाते
हमने दरअसल खुद को संडास बना डाला है
और मजा यह कि
इसकी भी हमें खबर ही नहीं....!!
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गरीब लोगों को भूख बड़ी लगती है...
भूखों को भूख लगना लाजिमी है....
अमीरों को भूख बड़ी लगती है....
गरीबों से कहीं बहुत-बहुत ज्यादा
लगता है उनकी तबियत बहुत ज्यादा खराब है....!!
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काल चल रहा है हमारे साथ....
अगर उसकी भाषा हम समझ सकें तो.....
काल चल रहा है हमारे साथ.....
अगर उसकी चाल समझ सकें तो......
काल चल रहा है हमारे साथ.....
अगर उसका मिजाज हम परख सकें तो....
काल चल रहा है हमारे साथ.....
अगर उसकी रफ़्तार समझ सकें तो.....
काल चल रहा है हमारे साथ.....
अगर उसका एक अंश भी समझ पाने में समर्थ हों हम
तो बदल सकते हैं हम खुद को
भीतर से पूरा का पूरा....
.....सम्पूर्ण....!!
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एक फरियाद है सबसे.....
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सब अच्छे हो जाओ ना....!!
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बिटियाओं पर मेरा स्नेह और आशीर्वाद सदा ही बेटों से ज्यादा है,ये दोनों बेटियां कहने को मेरी तो नहीं हैं,श्यामल सुमन जी की पोतियाँ है शायद,मगर मेरे मन की कहूँ तो दुनिया की सारी बिटियाओं के लिए मैं खुद इक क्षत्र छाया बन जाना चाहता हूँ,बेटियों को घर में देखकर एक सुखद आनंदपूर्ण अनुभूति होती है,आँख भर आती है अक्सर,कि उन्हें विदा करना है,जिन्हें रातों जग-जग कर पाला है,और पता नहीं क्या-क्या कुछ किया है जिनके लिए,बस यही मन में होता है,वो अपने भीतर की दौलत को पहचाने,अपने देश की,मिटटी की और विश्व की पहचान बने...अपने परिवार का गौरव बनें...बेटों ने कितना बदला है विश्व को,सो तो मैं देख चूका....अब सारा विश्वास,सारी आशा बेटियों पर ही बच गयी है....मेरी आशा निरर्थक ना जाए..हमारी बेटियां विश्व की सिरमौर बने....और मैं कह सकूँ....कि हाँ ये मेरी बेटियां हैं....कि सारी बेटियाँ मेरी ही बेटियाँ हैं....!!
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कोई भी उम्मीद नज़र नहीं आती
तहजीब हमको अगर नहीं आती !
यूँ तो आती है बहुत शर्म हमको
खुद अपने आप से पर नहीं आती !
दूर से चली जाती है हमें देखकर
कोई ख़ुशी हमारे इधर नहीं आती !
उसके वादों में इक उम्र गुजारी है
कहती है कि आयेंगे,पर नहीं आती !
जिन्दगी इतना उधम मचा रही है
मौत भी डरकर इधर नहीं आती !
दिन तो तरह-तरह से काट लेता हूँ
रात मगर कमबख्त काटी नहीं जाती !
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जिससे भी की है दोस्ती,वो मुझ जैसा ही लगा है
चाहा हर किसी को इतना,वो मुझ जैसा ही लगा है !
रास्ते में छोड़ गया है वो मुझे तो कोई बात नहीं
दोस्त का चुभोया हुआ खंजर खुद जैसा ही लगा है !
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किसी का यूँ बीच सफ़र में छोड़ जाना अच्छा तो नहीं है
हर किसी को गाफिल का साथ भाये,ये लाजिम भी नहीं !
यूँ तो बन जाता हूँ मैं किसी की भी पंचायत में मुनसिब
पर किसी अपने के ही मुकद्दर में होना हाकिम भी नहीं !
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कहते हैं टूटा हुआ तारा टूट कर कभी नहीं लौटा
फिर भी आदमी की आस रास्ता सजाये बैठती है !
रोज टूट जाता है कहीं ना कहीं कोई ना कोई दिल
आदमी की उम्मीद पर फिर भी दुनिया टिकती है !
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अजीब सा बनाया है तुने इस आदम को ओ यारब
अपना काम भी करता है दूसरों पे अहसां करता हुआ !
बात तो करता है सबसे जीओ और जीने देने की मगर
दिखता है यह सबको मारता हुआ और खुद मरता हुआ !
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दिल खोल कर कहना चाहता हूँ ओ यारब अब मुझे उठा भी ले
मुझे समझ ही नहीं आता यह आदम इतने धत्त्करम करता हुआ !
==============================================
कहीं भी कुछ भी हो जाए यह हमारी जिम्मेवारी नहीं है
और हम अगर कुछ कर भी ना पायें तो लाचारी नहीं है
कोई तड़पता हुआ हमारी आँख से सामने मर भी जाए,तो क्या हुआ
किसी स्त्री की इज्जत सरेआम लुट भी जाए तो क्या हुआ
अभी-अभी कोई गोली ही मार दे किसी को तो हम क्या करें
अभी कोई किसी को उठा कर ले जाए तो हम क्या करें
हम क्या करें अगर संसद में शोर-शराबा हो रहा होओ
हम क्या करें जब सब कुछ हमारा लुट-पिट रहा होओ
अभी-अभी हम भ्रष्टाचार पर चीखेंगे-चिल्लायेंगे
अभी-अभी हम किसी गीत पर झूमेंगे गायेंगे
अभी-अभी हम किसी एक चोर को गद्दी से हटायेंगे
अभी-अभी हम किसी दुसरे चोर की सरकार बनवायेंगे
बहुत कुछ घटने वाला है अभी हमारी आँखों के सामने
पूरा देश ही लुट जाने वाला है हमारी आँखों के सामने
अपने अहंकार के बात-बात पर हर किसी से लड़ने वाले हम
कभी एक क्षण भर के लिए भी यह नहीं सोच पाते कि
अपना यह लुटा-पिटा अहंकार और यह झूठी गैरत लिए
खुदा के घर वापस जाकर भी उसे क्या मुहं दिखायेंगे !!
=============================================
बहुत दिनों से चाहर रहा हूँ लिखना एक कविता
मगर पूरी ही नहीं हो पा रही है यह कविता....
यह कविता भूखे लोगों की है
बेबस और कमजोर लोगों की है
यह कविता मेहनतकश लोगों की है
यह कविता स्त्रियों और बच्चों की है
यह कविता तमाम असहायों की है
यह कविता पीड़ित मानवता की है
यह कविता लोगों की जीवंत अभीप्सा की है
कविता तो यह उपरोक्त लोगों की ही है
मगर अनचाहे ही यह कविता
कुछ दरिंदों की है,कुछ राक्षसों की भी
कुछ हरामियों की की है,कुछ कमीनों की भी
इंसानियत के दुश्मन कुछ समाजों की भी
धर्म के आडम्बर से भरे कुछ लोगों की भी
स्त्रियों और बच्चों का शोषण करने वालों की भी
और मानवता को शर्मसार करने वालों की भी
यह कविता कुछ अत्याचारियों की भी है और
कुछ अनंत धन-पशुओं और देह-भोगियों की भी है
मगर दोस्तों यह कविता मेरी-आपकी किसी भी नहीं है
क्योंकि हम तो यह कविता पढने-लिखने
फेसबुक पर लाईक और कमेन्ट करने वाले शरीफ लोग हैं
और कवितायें शरीफों की नहीं होती
इसलिए आईये ओ दोस्तों
हम कुछ बेहतर अगर नहीं कर सकते
खुद भी अगर बदल नहीं सकते
आज से हम भी हरामी और कमीने बन जाएँ
और कोई हम पर भी कुछ कविता लिख ही डाले....!!
===============================================
कहनी होती हैं बहुत सारी बातें
कहते-कहते रूप बदल जाता है !
खडा होता हूँ आईने के सामने
इकबारगी अक्श बदल जाता है !
कहना चाहूँ हूँ तुझसे कुछ,मगर
तेरे आगे लफ्ज़ फिसल जाता है !
हर बार तिरी तारीफ़ करता हूँ
हर बार कुछ और बदल जाता है !
रुकना तो बहुत चाहता है आदम
यहाँ से पर चला ही हर जाता है !
हर बार तेरे पा पकड़ता हूँ यारब
और हर बार तू मुकर जाता है !
तू भी इक किस्सा बन जायेगा "गाफिल"
बहुत तू यहाँ अपनी हेंकड़ी दिखाता है !
===================================
तेरा मेरा तू क्या करता है
तेरा सब धरा रह जाएगा !
उलटा-सीधा करता रहता है
उससे आँख मिला पायेगा ?
थोड़ा दूसरों को भी बांटा कर
ज्यादा खाया तो मर जाएगा !
जिन्दगी उसकी दी नेमत है
बेहतर जी ले,कब मर जाएगा !
तुझमें दम बहुत है प्यारे,पर
उससे डर गो,कुछ हो जाएगा !
कितना लालची बन्दा है तू
सबका हिस्सा ही खा जावेगा !
बस इक छोटा-सा परिवार तेरा
बस कर अब कितना खावेगा !
तेरा सब धरा रह जाएगा !
उलटा-सीधा करता रहता है
उससे आँख मिला पायेगा ?
थोड़ा दूसरों को भी बांटा कर
ज्यादा खाया तो मर जाएगा !
जिन्दगी उसकी दी नेमत है
बेहतर जी ले,कब मर जाएगा !
तुझमें दम बहुत है प्यारे,पर
उससे डर गो,कुछ हो जाएगा !
कितना लालची बन्दा है तू
सबका हिस्सा ही खा जावेगा !
बस इक छोटा-सा परिवार तेरा
बस कर अब कितना खावेगा !
=====================================================
मुझसे बचकर रहना ओ तू प्यारे
मुझमें तो इक आग बसा करती है !
हल पल जो मुझमें बहती रहती है
अपनी कसौटी मुझे कसा करती है !
मैंने जब-जब तुझको देखा यारब
कोई लपट मुझमें निकला करती है !
मैं मांगू तो क्या मांगू तुझसे यारब
तेरी कमी धरती पर बहुत खलती है !
ऊपर जाकर भी तुझको देखूंगी मैं
मेरी मां मुझसे अक्सर कहा करती है !
मुझको लिखना कुछ अच्छा नहीं आता
दुनिया अच्छी है,इसको अच्छा कहती है !
================================
इन दिनों खुश बहुत रहता हूँ
इन दिनों मुझको गम बहुत हैं !
खुद से खुद को झेलने के लिए
इक खुद अकेले हम बहुत हैं !
खुद से हम क्या-क्या चाहते हैं
खुद से हमको जंग बहुत है !
आज करे क्यूँ,कल कर लेना
कुछ करने को जनम बहुत हैं !
क्या-क्या करना है आदम को
ये सोचने को आदम बहुत हैं !
धरती को हम खूब सोखेंगे
धरती में अभी दम बहुत है !!
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सबके बीच भी तनहा हूँ,अजीब हूँ मैं
क्या-क्या बकता रहता हूँ अजीब हूँ मैं !!
कितने सवालों के घेरे में है ये आदम
उलटा उससे प्रश्न करता हूँ,अजीब हूँ मैं !!
सब लागों के सारे गम को खुद में भरकर
खुद ले लिपट कर रोता हूँ अजीब हूँ मैं !!
तुझे अक्सर देखा करता हूँ कुछ इस तरह
तुझको खुद में पाया करता हूँ अजीब हूँ मैं !!
खुद के साथ भी बहुत देर तक रह नहीं पाता
खुद को तनहा छोड़ जाता हूँ अजीब हूँ मैं !!
===========================================
बंद कराने वालों से पूछिये बंद करवाने का मजा
बंदी का मजा वो क्या ख़ाक समझेंगे
जो रोज कमाते हैं,रोज खाते हैं
यह बंदी अपने भीषण कार्य से प्रताड़ित लोगों को
एक दिन के लिए सुकून देने के लिए है
फिर भी ये साले ठेले-खोमचे वाले और कुली मजदूर
कमाने के लिए सड़क पर आ जाते हैं
जो बंद के आयोजनों का अपमान करते हैं
ऐसे मनहूस लोगों से नहीं चल सकता यह देश
जो देश की जनता के भले के लिए आयोजित बंदी के दिन भी
काम पर जाकर बंद का विद्रोह करते हैं
अरे विद्रोह ही करना है तो भूख से करो विद्रोह
मत खाओ एक दिन तो क्या हर्ज पड़ जाएगा
कोई आसमान तो नहीं ना टूट जाएगा !!
कोई एक दिन अस्पताल नहीं जा पाए तो क्या
लाखों बच्चे बसों में फंसे रह जाए तो क्या
तरह तरह के काम रुक भी जाएँ तो क्या
अरे यह बंद लोगों के द्वारा लोगों भले के लिए है
अब क्या है कि गेहूं के साथ घुन का पिसना ही ठहरा
जोर जबरदस्ती हो रही है तो होने दो
ट्रेन-बस-सवारी सब लेट हो रही है तो होने दो
बंद के चक्कर में चाहे कुछ भी हो जाए
उसमें लोगों का ही भला है
देश भीतर भी जाए तो इसमें ऐसा क्या बुरा है !
यह बंद बंद-कर्ताओं की आन है
यह बंद देश की आन-बान-शान और जान है
तो आओ ना मेरे प्यारे-प्यारे दोस्तों
सिर्फ आज ही भला क्यूँ ,हम सब मिलकर
भारत को हमेशा के लिए ही बंद करा दें....
इस देश की बची-खुची इज्जत को भी मिटटी में मिला दें...!!
===========================================
बंद ईलाज नहीं बल्कि खुद एक समस्या है
और ईलाज जनता खुद है....
अगर वो (यानी कि हम)
पूरी-की-पूरी ही सड़क पर निकल आये
अगर वो (यानी कि हम)
सम्मिलित रूप से अपनी ताकत
और अपना भय उस संस्था को दिखाएँ
जो दुर्भाग्य से खुद को सरकार तो समझती है
मगर उसके कर्तव्यों को पूरा नहीं करती
हममे से अगर अब भी एक-एक उठ कर खडा नहीं हुआ
तो घर में ही टी.वी. देखता कुरकुरे खाता रह जाएगा
बंद के आयोजनों को तस्वीरों में निहारता रहेगा
तो कभी नहीं होगा किसी का बंद सफल
अंततः सत्ताओं की नींद तब ही जागी है दोस्तों
जब निरीह लोगों या आम जनता ने सरेआम
उन पर हमला नहीं बोल दिया है....
और हम सिर्फ हल्ला बोल रहें हैं....!!
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- Malihuzzama Khan भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ लोगों को सड़क पर उतरने की ज़रूरत है
- मगर ये भी एक टेम्परेरी ईलाज ही होगा,क्योंकि सत्ता को अगर जनता बर्खास्त कर भी डाले तो उसे चलाएगा कौन....चूहे-बिल्ली....??इधर झारखण्ड में क्या हुआ,बारह साल होने को आये....??......तो शासन उखाड़ना और शासन चलाना दोनों अलग-अलग बातें हैं,जब तक वाकई कोई ऐसे व्यक्तित्व परिदृश्य में नहीं उभरते,जो देश-हित को ही तवज्जो देते हों,साथ ही जिन्हें शासन की तमीज भी हो....उन्हें हम शासन सौंपे....मगर ऐसा भी जागरूक और शिक्षित मतदाताओं द्वारा ही हो सकता है और इस करके यह कह पाना भी संभव नहीं कि ऐसा कब होगा...हम बस आशा कर सकते हैं....और आन्दोलन,जिसकी इन्तेहाँ एक अच्छे नेतृत्त्व के रूप में हो....!!
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- आईये मुर्दे का भरता बनाकर खाएं......
- अरे!!पहले खुद को कडाही में तो चढ़ाएं....!!
- कहते हैं इतिहास बार-बार खुद को दुहराता है
- मगर हम हैं कि कोई सबक ही नहीं लेते .....
- वाह रे समझदारी हमारी....!!??