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शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011



उठ रही है आग आज मिरे सीने में 

कि चढ़ रहा है कोई दिल के जीने में !!
धूप है कि सर पे चढ़ती जा रही है
और निखार आ रहा मिरे पसीने में !!
अब यहीं पर होगा सभी का फैसला 
कोर्ट सड़क पर बैठ चुकी है करीने में !!
आओ कि उठ रही ललकार चारों तरफ 
कोई कसर ना बाकी रखो अपने जीने में !!
भले ही कोई गांधी हो ना कोई सुभाष 
इस हजारे को ही बसा लो अपने सीने में !!
अब भी अगर जागे नहीं तो फिर कहना नहीं
कोई बचाने आयेगा नहीं तुम्हारे सफीने में !! 
  

रविवार, 3 अप्रैल 2011

ओ अल्ला ताला.....

ओ अल्ला ताला.....
तारीफ है तेरी....
तालियाँ....तालियाँ....
आह 
कितना बड़ा उठाईगीर है तू...
कितना निराला साज है तेरा 
मौत का  तमाशगीर है तू...
आ ना तेरे हाथों का ले लूं मैं बोशा 
कितनी सारी जानों का फ़कीर है तू 
कित्ते सारे लोग है यहाँ बेबस-लाचार 
क्या ऐसी ही धरती का आलमगीर है तू ?
धरती के लोगों को खेल खिलाता है ना !!
कित्ता शैतान है तू.....कित्ता सरीर है तू....