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गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

आज भी जो कुछ लिखा......

भीतर-ही-भीतर कोई पिघलता जा रहा है 
मेरे भीतर से जैसे कोई बाहर आ रहा है !!
किसी के समझ नहीं आने को है यह बात 
मुझे भी कोई बहुत देर से ये समझा रहा है !!
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दर्द को बहुत भीतर तक छिपाता हूँ मैं 
उफ़,मगर दर्द बाहर आ ही जाता है!!
कोई धोखा दे डालता जब किसी को 
कलेजा कट कर बाहर आ ही जाता है !!
आदमी अगर सचमच आदमी सा रहे 
चिलमन को खुद ही मजा आ जाता है !!
आदमी किसी को सजा क्यूँ देना चाहता है 
आदमी तो खुद ही बहुत सज़ा पा जाता है !!
मैंने बहुत हुस्न देखा है मगर सच कहूँ ?
सिर्फ अच्छापना ही आदमी को भाता है !!
कोई तूझे भीतर तक देख ना ले "गाफिल"
तू हर वक्त अपना आपा क्यूँ खो जाता है ?
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भीतर-ही-भीतर कोई पिघलता जा रहा है 
मेरे भीतर से जैसे कोई बाहर आ रहा है !!
किसी के समझ नहीं आने को है यह बात 
मुझे भी कोई बहुत देर से ये समझा रहा है !!
जल जाने के बाद क्या मिलता है परवानों को 
तेरे जाने के बाद यह मुझे समझ आ रहा है !!
अभी तो वह खुद नफ़रत की फसल बो रहा है 
उसके बच्चे भुगतेंगे,उसे समझ नहीं आ रहा है !!
मैनें अक्सर उसे मेरे भीतर ही आते हुए देखा है
मगर आज वो जाने क्यूँ मुझसे बाहर जा रहा है !!
कुछ समझाना चाह रहा हूँ लोगों को मैं बरसों से
किन लफ़्ज़ों में समझाऊं,समझ नहीं आ रहा है !!
मैं मेरे बाहर ग़मों से भरा जा रहा हूँ "गाफिल"
और वो मेरे भीतर बैठा मुझपे मुस्कुरा रहा है !!

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शब भर जागेगा चाँद और
तारे भी शब भर जागेंगे
रात भी जागेगी सारी रात
इतने लोगों के बीच भला....
मैं कहाँ तन्हा हो पाउँगा...!!

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मुझे पता था कि तू मुझे पसंद नहीं करता
इसीलिए नज़र फिराता रहता मुझसे तू
मगर आज जब यहाँ नहीं हूँ तो ये क्या
तेरे लब कपकपाने लगे आँख में आंसू आ गए...!!

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छोड़ ना,अब मत ना गिला कर तू किसी बात का 
तेरी खुशियों के लिए तुझे छोड़ कर जा रहा हूँ मैं !!
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आग लगी हुई है भीतर मेरे ऐसी 
कहीं मैं ख़ाक तो नहीं हो जाउंगा 
जिदगी में ही जब कुछ नहीं पाया 
मरकर भी भला क्या पा जाउंगा...!!

रविवार, 22 अप्रैल 2012

आज जो कुछ कह गया.....

हर सू जो दिखाई देता है,वो कौन है 
इस बात पर मेरे भीतर भी मौन है !!

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कोई किसी को क्यूँ पसंद करता है
मैं ये नहीं जानता 
जिंदगी तूने मुझे पसंद किया तो....
मुझमें जरूर कोई बात रही होगी....!!!!

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मुझे पता है कि एक दिन 
तू मुझे अपनी सेज में लिटा कर 
अपनी बाँहों में भरकर प्यार करेगी 
बस इसी प्यार की खातिर 
यह इत्ती बड़ी जिंदगी जिए जा रहा हूँ 
अ मौत,तू थोड़े दिन और ठहर 
मैं थोड़े दिनों में ही आ रहा हूँ....!!!!

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उम्र की सलीब पर कुछ साँसे टंगी हुईं हैं...
वो अगर चुक जाएँ,तो चलूँ 
मौत अगर हाथ आ गयी 
दौलत हाथ लग जायेगी 
जिंदगी को पकडूं तो हाथ मलूँ

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एक और आदमी है मुझमें 
जो हरदम पगलाया हुआ है 
मैं आपको शांत लग सकता हूँ 
वो तावक्त बौराया हुआ है 
मैं उससे सच में मिलना नहीं चाहता 
मगर रहता है वो मुझमें ही कहीं 
मुझे बाहर निकलते वक्त...
मुझमें वापस घुसते वक्त 
पल-पल सामना होता है मेरे-उसका 
मैं क्या करूँ उस पागल का 
आप ही बताऊँ ना दोस्तों....
मैं क्या करूँ उस पागल का....!!

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रात भर खोजता रहता हूँ.....सुबह को....
रात भर मुझे नींद नहीं आती...
सुबह सोने से ठीक पहले 
कुछ खाब आते है रात के 
और मैं जान जाता हूँ...
कि रात भर खूब सोया था मैं 
खाब ना आये तो पता भी न चले 
कि कब रात गयी....
कब सुबह हुई....
ये ही कुछ खाब हैं 
जो मुझे जगाये हुए हैं....
जो मुझे जिलाए हुए हैं....!!!

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चाँद बनकर कुछ सोचा था मैंने....
चांदनी हिस्से में आ गयी....
इससे पहले कि उसे बाहों में भर लेता मैं....
रात मेरे आड़े आ गयी.....
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किसी को कोई बताए ना.......
इसी चाँद को चूमता रहा हूँ मैं सौ-सौ बार....
हज़ार-हज़ार बार.....
आज पता चला यह कि 
यह रौशनी किसी शाम की देह की चिंगारियां थी
....जभी मैं सोचूं.....
चाँद में ये भीगी-भीगी से तपिश सी कैसी है.....!!
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कल चली जाना 
आज भर ठहर जा ना....
जिंदगी 
मुझे पहले मौत को 
अपनी बाहों में भर कर 
चूम लेने दे 
पुरजोश प्यार कर लेने ना 
तू भी यह मंजर देख ले ना 
आज भर ठहर जाना 
जिंदगी 
तू कल चली जाना....!!

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

इक गज़ल....और कुछ कुछ....


तू रहे अच्छा,इसलिए खुद को मिटा रहा हूँ मैं
इतना सबकुछ करके भी तेरा रहा कहाँ हूँ मैं !
तेरे आने की राह बुहारने को मैं आया था यहाँ
तुझे नहीं पसंद तो ये ले,यां से जा रहा हूँ मैं !
अपनी हस्ती को संवारने को क्या-क्या किया
इसकी खातिर ना जाने कहाँ से कहाँ रहा हूँ मैं !
कभी फुर्सत के पलों को भी ठीक से ना जीया
कभी इस काम में कभी उसमें मरता रहा हूँ मैं !
तेरे आने के इंतज़ार में ही मैं इत्ता जीता रहा
ऐ मौत ज़रा ठहर जा कि अभी नहा रहा हूँ मैं !
तेरे आने से मन इक चिड़िया सा चहक उठा है
तेरे भीतर से ही कहीं उड़कर बाहर आ रहा हूँ मैं !
उसके घर की हर एक बातें मुझको मालूम हैं अब
खुदा के घर से ही होकर गाफिल आ रहा हूँ मैं !!
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तेरी पलकों पे भी एक 
आंसू सिमट आया है 
धत्त गलती हो गयी....
आंसू नहीं ,मोती था....!!
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गैर को उसने दिया बोसा 
की मेरे दिल ने आह क्यूँ ??
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उमड़ा तो बहुत था तुझे देख-देख कर 
मगर कभी बरस नहीं पाया था मैं !
तुझे दूर-दूर से देखकर ही 
मेरे खुद के पास आया था मैं 
तुने मुझमें ऐसा क्या जगा दिया था 
कि सोते में भी देखा किया तुझको ही 
एक ना पूरा होने वाला ख्वाब 
सूनी आँखों में बस गया था मेरे 
और फिर भी रौनक थी तेरे कहीं होने की 
आज जब तू मेरे पास नहीं है तो भी आकर देख ना 
तेरी यादों से हरदम हरा-भरा हूँ मैं
मेरे आस पास ही कहीं बसा करता है तू....
अब तो हरदम तू मेरे ही पास है कहीं
तेरी रंगीनियों से भरपूर है मेरी जिंदगी,,,,
मैनें खुद को कभी पाया ही नहीं तुझसे दूर कहीं
मैं जानता हूँ मैं हूँ जहां,तू है जरूर वहीँ कहीं
इस हवा में तू है,तू है सब चीज़ों में है अब फना
तुझे किस तरह बताऊँ अ जाना
कि तुझे किस तरह चाहता हूँ मैं....
कि तुझे इस तरह चाहता हूँ मैं
तुझे इसी तरह चाहता हूँ मैं.....!!

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बहुत बार सोचा है यार तेरी सूरत मिटा देने को
मगर क्या करूँ खुद को मिटाने से डरता हूँ मैं !
रोज शाम तक बिखर-बिखर जाया करता हूँ मैं
रोज सुबह तेरी यादों के साथ फिर से संवरता हूँ मैं !!

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सिर्फ आँख से ही ओझल होता है सब कुछ.....
और अगले ही क्षण बैठ जाता है दिल में
वो सब कुछ सदा-सदा के लिए.....!!

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अभी कुछ मत कह मुझे,अभी कुछ सोच रहा हूँ मैं
तू दिखाई मत दे कि तेरे बारे में ही सोच रहा हूँ मैं !
बहुत कुछ पा-पाकर खुद को ही खो दिया है इसने
और क्या पाना बाकी है आदम को,सोच रहा हूँ मैं !
आसमान की बुलंदी पर जा बैठा है आदम,कहते हैं
जमीर की बुलंदी कहाँ है बची इसमें खोज रहा हूँ मैं !
तेरी खूबसूरती पर वारी-न्यारी हुई जाती हैं अँखियाँ
तू गर होता भीतर भी सुन्दर, यही सोच रहा हूँ मैं !
आज तो तेरे बारे में सोच-सोच कर जीया करता हूँ
तेरे ना रहने पर क्या सोचूंगा उफ़,ये सोच रहा हूँ मैं !

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बहुत कुछ दबा पड़ा है मेरे सीने के भीतर
मरने के बाद भी इसे उघाडना मत दोस्तों !
बहुत कुछ झेला है जिंदगी ने,बताना क्या
रिश्ते किसी से मगर बिगाडना ना दोस्तों !
हम सबकी जिंदगी एक फिल्म है दोस्तों
बहुत कुछ बैन है,जिसे उघाडना ना दोस्तों !
बहुत कुछ कहना चाहता हूँ तुमसे मगर
किस बात से करूँ शुरू बतलाना तो दोस्तों !
कोई गज़ल लिखने का मतलब नहीं है मेरा
जो कुछ समझ पाओ,मुझे समझाना दोस्तों !
कुछ हलकी-फुलकी बात लिख दिल हुआ हल्का
अगर तुम्हें ना लगे ठीक तो बतलाना दोस्तों !

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मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

बक गया हूँ जुनूं में क्या क्या !! [1]

भगवान को बहुत मानते हो ना ?
तो ऐसा कैसे कर सकते हो ? 
कि तुम्हारे बंधू भूखे मरें !
और तुम डकारें लो !!
भगवान से बहुत डरते हो ना 
तो लोगों को कैसे डराते फिरते हो ?
जबकि तुम्हीं कहते हो कि 
सबका फैसला ऊपर होगा !!
सबका मालिक  एक है 
यह भी तो तुम्हीं कहते हो ना 
तो खुद को मालिक क्यूँ कहलवाते हो ?
मैनें देखा है तुम्हें अक्सर 
बहुत से संतों की शरण में भी 
वहां तुम क्या करते हो 
जब कि तुम उनकी किसी 
बात पे अमल तक नहीं करते ?
ऐसी सब बातें तुम करते हो 
जिनपर तुम कायम ही नहीं रहते 
तो खुद को वही दिखाओ ना,जो तुम हो 
जो हो ही नहीं वो 
दिखने का दिखावा क्यूँ करते हो 
हमें पता है कि तुम राक्षस हो 
आदमी होने का दावा क्यूँ करते हो ??
[इस भाव को कोई अन्यथा ना लेवे ,
ये प्रश्न मेरे खुद से हैं !!]
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मान लो कि कोई आपकी वह तारीफ़ करता है 
जिसके हकदार सचमुच में आप नहीं हो 
तो फिर उसे ऐसा कहने से रोक लो ना....
सच बताऊँ ??
तब तुम सचमुच आदमी बन जाओगे !!
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कभी तो सुनाई भी नहीं देता 
इस तरह भीतर बस जाता है 
कभी इतना शोर करता है कि 
वो भीतर कहर बरपाता है 
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कितनी बेहयाई से ये सब कुछ करता है आदमी 
कहते हैं लोग कि खुदा से बहुत डरता है आदमी !
यह डर अगर ऐसा है कि आदमियत ही भूल जाए 
डर ना रहा तो क्या पता क्या बन जाएगा आदमी !! 
धरती को तो गटर बना डाला है इसने 
आसमान में क्या तलाश रहा है आदमी !
क्यूँ फ़िक्र करता है तू आदमी की 
अबे पहले खुद तो बन जा आदमी !!
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मुझ जैसे बहुत लोगों को यह चिंता है कि कहाँ जाएगा आदमी 
उन जैसे लोग यह कहते हैं कि मैं भी आखिरकार वहीँ जाउंगा...!!
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किसी सिम्त चैन नहीं आता गाफिल 
या तो यः फिक्र छीन ले या फिर हस्त !!
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खुद की असलियत  को पहचान  ले 
गाफिल खुद को आईना बना के देख ! 
मुझे सब्र है कि दुनिया बदल जायेगी 
मेरे बाद मुझे फिक्र ही कहाँ आ पाएगी !
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आदमी को आदमी बनाना चाहता है ?
अरे भई रहने दे जो जैसा है उसे जीने दे !!
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जिन्दादिली इसी को कहा करते हों शायद 
किसी के दिल को ज़िंदा ही हलाल कर देना !!
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मैं इसी वक्त अपने गम भूल जाऊं 
इक ज़रा हंस कर दिखा दे मेरे यार !!
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मैं तेरे नाम-का रसूख लेकर यां से जाऊं 
अ खुदा तू मुझे अपनी तरह का कर देना !! 
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एक-एक पल बेशकीमती है इस धरती पर 
आदमी किसी चीज़ की कीमत नहीं जानता !
क्या-क्या कीमत लगाए बैठा है किन-किन चीज़ों की 
यः आदमी खुद की तो कीमत तक नहीं पहचानता !! 
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अब चलता हूँ दोस्तों,सबको विदा 
मुझे तुम किसी दिन याद कर लेना !! 
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यूँ आंसू ना टपका,बहुत कीमती हैं 
इनके मुकाबिल मिरी जान सस्ती है !!
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एक आदमी पगलाया हुआ शहर में फिर रहा है 
आपको दिखाई दे तो उसे गाफिल समझ लेना !!
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आज के बाद नहीं लिखूंगा,ऐसा बहुत बार सोचा है 
मगर क्या करूँ,रात जाती है और दिन निकलता है !!