भीतर-ही-भीतर कोई पिघलता जा रहा है
मेरे भीतर से जैसे कोई बाहर आ रहा है !!
किसी के समझ नहीं आने को है यह बात
मुझे भी कोई बहुत देर से ये समझा रहा है !!
========================
दर्द को बहुत भीतर तक छिपाता हूँ मैं
उफ़,मगर दर्द बाहर आ ही जाता है!!
कोई धोखा दे डालता जब किसी को
कलेजा कट कर बाहर आ ही जाता है !!
आदमी अगर सचमच आदमी सा रहे
चिलमन को खुद ही मजा आ जाता है !!
आदमी किसी को सजा क्यूँ देना चाहता है
आदमी तो खुद ही बहुत सज़ा पा जाता है !!
मैंने बहुत हुस्न देखा है मगर सच कहूँ ?
सिर्फ अच्छापना ही आदमी को भाता है !!
कोई तूझे भीतर तक देख ना ले "गाफिल"
तू हर वक्त अपना आपा क्यूँ खो जाता है ?
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भीतर-ही-भीतर कोई पिघलता जा रहा है
मेरे भीतर से जैसे कोई बाहर आ रहा है !!
किसी के समझ नहीं आने को है यह बात
मुझे भी कोई बहुत देर से ये समझा रहा है !!
जल जाने के बाद क्या मिलता है परवानों को
तेरे जाने के बाद यह मुझे समझ आ रहा है !!
अभी तो वह खुद नफ़रत की फसल बो रहा है
उसके बच्चे भुगतेंगे,उसे समझ नहीं आ रहा है !!
मैनें अक्सर उसे मेरे भीतर ही आते हुए देखा है
मगर आज वो जाने क्यूँ मुझसे बाहर जा रहा है !!
कुछ समझाना चाह रहा हूँ लोगों को मैं बरसों से
किन लफ़्ज़ों में समझाऊं,समझ नहीं आ रहा है !!
मैं मेरे बाहर ग़मों से भरा जा रहा हूँ "गाफिल"
और वो मेरे भीतर बैठा मुझपे मुस्कुरा रहा है !!
==========================
शब भर जागेगा चाँद और
तारे भी शब भर जागेंगे
रात भी जागेगी सारी रात
इतने लोगों के बीच भला....
मैं कहाँ तन्हा हो पाउँगा...!!
==========================
मुझे पता था कि तू मुझे पसंद नहीं करता
इसीलिए नज़र फिराता रहता मुझसे तू
मगर आज जब यहाँ नहीं हूँ तो ये क्या
तेरे लब कपकपाने लगे आँख में आंसू आ गए...!!
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छोड़ ना,अब मत ना गिला कर तू किसी बात का
तेरी खुशियों के लिए तुझे छोड़ कर जा रहा हूँ मैं !!
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आग लगी हुई है भीतर मेरे ऐसी
कहीं मैं ख़ाक तो नहीं हो जाउंगा
जिदगी में ही जब कुछ नहीं पाया
मरकर भी भला क्या पा जाउंगा...!!
मेरे भीतर से जैसे कोई बाहर आ रहा है !!
किसी के समझ नहीं आने को है यह बात
मुझे भी कोई बहुत देर से ये समझा रहा है !!
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दर्द को बहुत भीतर तक छिपाता हूँ मैं
उफ़,मगर दर्द बाहर आ ही जाता है!!
कोई धोखा दे डालता जब किसी को
कलेजा कट कर बाहर आ ही जाता है !!
आदमी अगर सचमच आदमी सा रहे
चिलमन को खुद ही मजा आ जाता है !!
आदमी किसी को सजा क्यूँ देना चाहता है
आदमी तो खुद ही बहुत सज़ा पा जाता है !!
मैंने बहुत हुस्न देखा है मगर सच कहूँ ?
सिर्फ अच्छापना ही आदमी को भाता है !!
कोई तूझे भीतर तक देख ना ले "गाफिल"
तू हर वक्त अपना आपा क्यूँ खो जाता है ?
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भीतर-ही-भीतर कोई पिघलता जा रहा है
मेरे भीतर से जैसे कोई बाहर आ रहा है !!
किसी के समझ नहीं आने को है यह बात
मुझे भी कोई बहुत देर से ये समझा रहा है !!
जल जाने के बाद क्या मिलता है परवानों को
तेरे जाने के बाद यह मुझे समझ आ रहा है !!
अभी तो वह खुद नफ़रत की फसल बो रहा है
उसके बच्चे भुगतेंगे,उसे समझ नहीं आ रहा है !!
मैनें अक्सर उसे मेरे भीतर ही आते हुए देखा है
मगर आज वो जाने क्यूँ मुझसे बाहर जा रहा है !!
कुछ समझाना चाह रहा हूँ लोगों को मैं बरसों से
किन लफ़्ज़ों में समझाऊं,समझ नहीं आ रहा है !!
मैं मेरे बाहर ग़मों से भरा जा रहा हूँ "गाफिल"
और वो मेरे भीतर बैठा मुझपे मुस्कुरा रहा है !!
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शब भर जागेगा चाँद और
तारे भी शब भर जागेंगे
रात भी जागेगी सारी रात
इतने लोगों के बीच भला....
मैं कहाँ तन्हा हो पाउँगा...!!
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मुझे पता था कि तू मुझे पसंद नहीं करता
इसीलिए नज़र फिराता रहता मुझसे तू
मगर आज जब यहाँ नहीं हूँ तो ये क्या
तेरे लब कपकपाने लगे आँख में आंसू आ गए...!!
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छोड़ ना,अब मत ना गिला कर तू किसी बात का
तेरी खुशियों के लिए तुझे छोड़ कर जा रहा हूँ मैं !!
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आग लगी हुई है भीतर मेरे ऐसी
कहीं मैं ख़ाक तो नहीं हो जाउंगा
जिदगी में ही जब कुछ नहीं पाया
मरकर भी भला क्या पा जाउंगा...!!