LATEST:


विजेट आपके ब्लॉग पर

बुधवार, 17 नवंबर 2010

जब कुछ नहीं बोलती स्त्री......!!


जब कुछ नहीं बोलती स्त्री
तब सबसे ज्यादा बोलती हुई कैसे लगती है !
जब गुनगुनाती है वो अपने ही घर में
तब सारी दिशाएं गाती हुईं कैसे लगती हैं भला !
जब आईने में देखती है वो अपने-आपको
तो चिड़िया सी फुदकती है उसके सीने में !
बच्चों के साथ लाड करती हुई स्त्री
दुनिया की सबसे अनमोल सौगात है जैसे !
जब कभी वो तुम्हें देखती है अपनी गहरी आँखों से
तुम सकपका जाते हो ना कहीं अपने-आप से !!
स्त्री ब्रह्माण्ड की वो सबसे अजब जीव है
जिसकी जरुरत तुम्हें ही सबसे ज्यादा है !
और गज़ब तो यह कि -
तुम उसे वस्तु ही बनाए रखना चाहते हो
मगर यह तो सोचो ओ पागलों
कि कोई वस्तु कैसी भी सुन्दर क्यूँ ना हो
सजीव तो नहीं होती ना....!!
जगत की इस अद्भुत रचना को
इसकी अपनी तरह से सब कुछ रचने दो !
कि सजीव धरती ही बना सकती है
तुम्हारे जीवन को हरा-भरा !
और सच मानो -
स्त्री ही है वो अद्भुत वसुंधरा !!

शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

....लो आप सब वो भी झेलो....!!!!

"मेरे भीतर यह दबी-दबी-सी आवाज़ क्यूँ है,
मेरी खामोशी लफ्जों की मोहताज़ क्यूँ है !!
अरे यह क्या लाईने आगे भी बनी जा रही हैं....लो आप सब वो भी झेलो....
"मेरे भीतर यह दबी-दबी-सी आवाज़ क्यूँ है,
मेरी खामोशी लफ्जों की मोहताज़ क्यूँ है !!
बिना थके हुए ही आसमा को नाप लेते हैं 
इन परिंदों में भला ऐसी परवाज़ क्यूं है !!
गो,किसी भी दर्द को दूर नहीं कर पाते 
दुनिया में इतने सारे सुरीले साज़ क्यूं है !!
जिन्हें पता ही नहीं कि जम्हूरियत क्या है 
उन्हीं के सर पे जम्हूरियत का ताज क्यूं है !!
जो गलत करते हैं,मिलेगा उन्हें इसका अंजाम 
तुझे क्यूं कोफ्त है"गाफिल",तुझे ऐसी खाज क्यूं है !!
जिंदगी-भर जिसके शोर से सराबोर थी दुनिया 
आज वो "गाफिल" इतना बेआवाज़ क्यूं है !!
सब कहते थे तुम जिंदादिल बहुत हो "गाफिल"
जिस्म के मरते ही इक सिमटी हुई लाश क्यूं है !!
उफ़!वही-वही चीज़ों से बोर हो गया हूँ मैं "गाफिल"
कल तक थी जिंदगी,थी,मगर अब आज क्यूं है ??

बुधवार, 3 नवंबर 2010

उम्र भर लिखते रहे............!!!

उम्र भर लिखते रहे,हर्फ़-हर्फ़ बिखरते रहे
बस तुझे देखा किये,आँख-आँख तकते रहे....!!
उम्र भर लिखते रहे.....
कब किसे ने हमें कोई भी दिलासा दिया
खुद अपने-आप से हम यूँ ही लिपटते रहे....!!
उम्र भर लिखते रहे.......
आस हमारे आस-पास आते-आते रह गयी..
हम चरागों की तरह जलते-बुझते रह गए.....!!
उम्र भर लिखते रहे.....
हम रहे क्यूँ भला इतने ज्यादा पाक-साफ़
लोग हमें पागल और क्या-क्या समझते रहे...!!
उम्र भर लिखते रहे....
आज खुद से पूछते हैं,जिन्दगी-भर क्या किये
पागलों की तरह ताउम्र उल्टा-सीधा बकते रहे....!!
उम्र भर लिखते रहे....!!!