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गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

ओ ईश्वर !!क्या तुम यह बता सकते हो...!!??

विरोध के स्वर उठ रहें हैं हैं मगर बहुत धीमे-धीमे 
जैसी कहीं चाय बनायी जा रही हो पीने के लिए 
शायद हम यह नहीं जान पाते कभी कि 
थोड़ी कसमसाहट भी जरूरी होती है जीने के लिए 
उदासियों के शाश्वत माहौल में 
चंद लोगों की खुशियों का रंग हावी है 
ये चंद लोग समा गए है दुनिया की सारी पत्र-पत्रिकाओं में 
और बाकी के बेनूर लोगों पर बेनूरी भी रोया करती है 
फिर भी रात के अंधेरों में रौशनी की चकाचौंध 
सिर्फ चंद दरवाजों पे ही दस्तक देती है 
ये चंद लोग कौन हैं,ब-जाहिर है चारों तरफ 
फिर भी जाने कैसे कब और क्यूँ धरती के 
अरबों जीते-जागते लोग समा गए हैं 
इन चंद लोगों की सुर्ख़ियों की कब्र में 
ये कब्रें मातम कर रहीं हैं हर बखत
ठीक वैसे ही 
जैसे खुशियों की बरसात हो रही है चंद आंगनों तलक 
आदमी सभ्य हो रहा है,आदमी सभ्य हो गया है 
आदमी चाँद पर जा चुका है 
आदमी मंगल पर जाने वाला है 
आदमी ने खोज लिए कई नए ग्रह रहने के लिए 
मगर आदमी अब तक नहीं बना पाया है 
धरती को जीने लायक इंसानियत से भरा-पूरा ग्रह 
अब वो नए ग्रहों का क्या करेगा 
ओ ईश्वर !!क्या तुम यह बता सकते हो...!!??

--
http://baatpuraanihai.blogspot.com/


गुरुवार, 8 दिसंबर 2011

हमें चाहिए होता है प्यार

हमें चाहिए होता है प्यार

और हम चुनते हैं सुन्दर-कीमती कपडे


हमें चाहिए होता है प्यार


हम चुनते हैं धन-संपत्ति-मकान


हमें चाहिए होता है प्यार


हम चुनते हैं अच्छा भोजन,अच्छे रेस्टोरेंट


हमें चाहिए होता है प्यार


हम चुनते हैं पैसे वाले दोस्त-रिश्तेदार


और बदले में दुत्कार देते हैं


अपने ही किसी कमजोर रिश्तेदार को


चाहे क्यों ना हो वो हमारा अपना ही खून


और इस तरह


हमें चाहिए होता है प्यार


मगर हम चुन लेते हैं


घृणा-अविश्वास-लालच और फरेब


अंततः हमें चाहिए होता है प्यार


और हम चुन लेते हैं


हमेशा के लिए शत्रुता


और इस तरह हमें जिन्दगी में


अपना चाहा हुआ सब कुछ मिल जाता है


बस एक सच्चे प्यार के सिवा.....!!

सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

कैसे समझाऊं उन लोगों को मैं कि..........

कैसे समझाऊं उन लोगों को मैं कि
जो धन वो चोरी-छुपे ले जा रहें हैं देश से बाहर 
या फिर अपनी ही कहीं-किसी तिजोरी में
उससे संवर सकती है उनके के हज़ारों भाइयों की ज़िंदगियाँ !
और खुश हो सकते हैं वो पेट भर अन्न या तन पर कपड़े पाकर 
कैसे समझाऊं उन लोगों को मैं कि
जिस धन के पीछे कर रहें वो इत्ते सारे कुकर्म 
अगर ना करें वो तो बदल सकती है देश की तकदीर !
कैसे समझाऊं उन लोगों को मैं कि
जो सुन्दर व्यवस्था वो अपने लिए चाहते हैं और बना रहे हैं 
उसी के कारण हो रही है उसी व्यवस्था में एक अराजक सडांध ! 
कैसे समझाऊं उन लोगों को मैं कि
जिस धन को सही तरीके से बाँट देने पर 
बेहतर तरीके से हो सकता है सामाजिक समन्वय !
उसे सिर्फ अपने लिए बचा लेने के कारण ही 
बढ़ रहा है असंतुलन और वर्गों में एक अंतहीन दुश्मनी ! 
कैसे समझाऊं उन लोगों को मैं कि
अगर रिश्तों पर दे दी जाती है धन को ज्यादा तरजीह 
तो बाहरी चकाचौंध तो बेशक आ सकती है जीवन में 
मगर रिश्तों का खोखलापन जीवन को कर देता है उतना ही निरर्थक !
कैसे समझाऊं उन लोगों को मैं कि
अगर धन के पीछे ना भागकर उसे परमार्थ के काम में लगा दो तो 
दुनिया बन सकती है सचमुच अदभुत रूप से संपन्न और सुन्दर !
जिसकी कि कामना करते रहते हैं हम सब हमेशा ही सदा से !
कैसे समझाऊं उन लोगों को मैं कि अगर सच में 
बेतहाशा धन कमाने वाले अगर अपना आचरण आईने में देख-भर लें 
तो शायद समझ आ जाए उन्हें वह सब कुछ 
जिसे समझने के लिए वो जाते हैं तरह-तरह के साधू-संतों के पास अक्सर ! 
कैसे समझाऊं उन लोगों को मैं कि
जिस व्यवस्था को कमा-खाकर भी वो कोसते हैं उसकी कमियों के लिए 
उस घुन को लगाने वाले सबसे बड़े जिम्मेवार दरअसल वो ही तो हैं !
कैसे समझाऊं उन लोगों को मैं 
क्यूंकि ऐसा करने वाले इतने थेथर-अहंकारी-धूर्त और मक्कार बन चुके हैं 
कि स्कूल-कॉलेज में पढ़-कर साधन-संपन्न बनाने के बाद भी 
उन्हें नहीं पता शब्दकोष के भीतर के अच्छे-अच्छे शब्दों का अर्थ 
क्योंकि दरअसल इन शब्दों के अर्थों को भूल-भुला कर ही तो 
वो बने जा रहे हैं इतने ठसकवान और ऐब-पूर्ण 
कि उन्हें अपने कारखानों या अपनी गाडी के नीचे आकर 
मरने वालों का चेहरा तक नहीं दिखाई देता !
और इस तरह जहां हज़ारों लोग भूखे मर जा रहे हैं 
वो खाए जा रहे हैं एक पूरे-का-पूरा देश 
और हज़म कर ली है उन्होंने एक समूची-की-समूची व्यवस्था.....!! 

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2011

ये ख़ास आदमी जो देश को रोज लहू में डुबोता है




ये ख़ास आदमी जो देश को रोज लहू में डुबोता है
कहते हैं फिर भी ख़ास आदमी को स्ट्रेस बहुत होता है!
बड़ी मुश्किलों से जो हाथ हर एक खेत जोतता है 
सोना बोकर भी इस आदमी का हाथ तंग ही होता है!
क्या ऐसे ही लोगों से होगा वतन का भाल ऊँचा यारों 
किसी के हाथ में लाठी है,किसी के हाथ में लोटा है!


पता नहीं कौन-सी मिट्टी का बना हुआ है आम आदमी 
देश चढ़ रहा है तरक्की की सीढ़ियाँ और ये मनहूस रोता है!
इस ख़ास आदमी की ताक़त और गरूर को तो देखिए जनाब 
जिसे काट डाला है अभी इसने,उसी के लहू में हाथ धोता है!
अब कैसे बताऊं तुम्हें कि मैं उसका कौन होता हूँ मेरे दोस्त
बस जब-जब तुम उसे मारते हो तब-तब दर्द मुझे होता है!


तुम्हारे लिए ये हरफ़ ग़ज़ल ना बन सकी हो तो ना ही सही
इस ग़ज़ल का मगर हर इक हरफ़ आम आदमी का दर्द रोता है!
ये सिसकियों की आवाज़ कहाँ से आ रही है ओ खुदारा मेरे
ये कौन है जो कब्र में भी आज तक खून के आँसू रोता है!!   

बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

is viyadashmi par........!!

शुभकामनाएं हम सभी को यदि 
अपने भीतर का रावण मिटा सकें
प्रेम-प्यार से वंचित इस धरती को 
फिर से हम सब जिला सकें !!
हममे से जो भी है समृद्द 
उसको कर्ण तो बनना होगा 
हर वंचित के सर के ऊपर 
इक छत्त बनंकर तनना होगा 
वरना इस समृद्धि पर धिक्कार है 
जिसके पीछे चारों तरफ इक हाहाकार है 
कब समझेंगे यह सब ज्यादा कमाने वाले 
अपने पेट से ज्यादा दूसरों का खाने वाले 
आग जली है जिनके भीतर और खाऊं-और खाऊं 
धरती का सारा धन लेकर मैं मर जाऊं 
सब जानते और कहते भी हैं कि खाली हाथ जायेंगे 
पता नहीं ये कब तक सबको और खुद को भरमायेंगे
इस रावण का क्या करें हम सब 
जो हम सब के भीतर बैठा है....
तरह-तरह के तर्कों के संग हममें वो जीता है 
कितना विवश और लाचार हैं हम इस रावण के आगे 
आदमी के लालच से डरकर उसके सारे गुण भागे 
रावण के पुतले को जलाकर हम भला क्या कर लेंगे 
अपनी इंसानियत को मार कर हम धरती को क्या देंगे 
आओ-आओ-आओ-आओ आज विजयादशमी मनाओ 
उससे पहले मगर इस रावण को तुम मार भगाओ 
तब लगेगा कि पहली बार दुर्गा पूजा आई.....
मन के भीतर इस दुर्गा की पवित्र जोत है छायी....!! 

मंगलवार, 27 सितंबर 2011

हे दुर्गा नमो नमः महेश्वरी.....

हे दुर्गा नमो नमः महेश्वरी 

हे काली,महाकाली दुर्गेस्वरी !
तुझको नमन करता हुआ 
तेरा आह्वान करता हुआ 
करता हूँ मैं करबद्ध प्रार्थना 
इस जग के सारे असुरों का 
फिर से संहार कर दे ओ माँ !!
मेरे बस में है ये ना 
किसी और के बस में ही है 
ये तो बस अब ओ माँ 
केवल तेरे बस में ही है 
धरती के संग खेलने वालों का 
मानवता का संहार करने वालों का 
कमजोरों का रक्त पीने वालों का 
बेबसों का चीर हरने वालों का 
वंचितों की पीर बढाने वालों का 
हर इक ऐसे असुर का अब 
सिर्फ तुम ही कर सकती हो दमन
या फिर कुछ ऐसा कर दो कि 
सच्चे लोगों में शक्ति भर दो
जो इन सबका नाश कर सके 
ऐसे लोगों को धरती में भर दो  
हे दुर्गा नमो नमः महेश्वरी 
हे काली,महाकाली दुर्गेस्वरी !!

शनिवार, 24 सितंबर 2011

हैप्पी बर्थ डे आल ऑफ़ टू यू


मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
हैप्पी बर्थ डे आल ऑफ़ टू यू
दिन बदलते हैं....
कुछ बदलता सा दिखाई देता है....
मगर कुछ बदलता सा नहीं होता...
बस थोड़ा सा हम बदल जाते हैं....
एक दिन और बढ़ जाते हैं....
एक कदम और मृत्यु की और ले जाते हैं 
दिन बदलते जाते हैं...
और हर एक दिन के साथ 
बढ़ा लेते हैं हम 
अपनी कुछ और जिम्मेवारियां....
सर पर बोझ बढाते जाते हैं 
और खुद ही हर दिन 
अपने-आप पर बोझ बनते जाते हैं 
बदलता है ना बहुत कुछ...
हमारा हंसता हुआ चेहरा
उदासी में परिणत हो जाता है 
इस उदासी के बीच 
घर की जिम्मेवारियों के बीच 
किसी एक दिन या कुछेक दिन 
हम हंस लिया करते हैं 
और हो जाया करते हैं बाग़-बाग़ 
ढेर सारी बधाईयाँ पाकर
खुशह हो जाया करते हैं...
जब बहुत सारे लोग करते हैं विश हमें
जन्मदिन तो है ही सबका कोई ना कोई दिन 
मगर हर दिन को खुशियों से जी लें 
अपनी समस्त जिम्मेवारियों के बावजूद 
अपने तमाम दुखों और पीडाओं के बाद भी 
तो दोस्तों...इस जीवन का कोई अर्थ है...
है ना दोस्तों मेरे प्यारे दोस्तों....
तो आज मेरे जन्मदिन से 
आप भी अपने-आप से यह वादा करो
कि आप सब खुश रहो हमेशा 
अपने समस्त दुखों-पीडाओं के साथ भी....
ये जो कर्मफल हैं हमारे....
उन्हें नहीं मेट सकता कोई भी....
तो फिर दुखी होना 
जीवन का अपमान करना ही तो है....
आईये हम ख़ुशी मनाये अपने होने की....
आईये मैं देता हूँ.....
आपको अपने आने वाले जन्मदिवस 
की अनंत-असीम शुभकामनाएं....!!   

शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......


बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......
आसमां की किस हद को छू पायेगा तू....
आदमी के जाल से कब तक बच पायेगा तू.....
बोल रे परिंदे....कहाँ जाएगा तू....

तेरे घर तो अब दूर होने लगे हैं तुझसे 
शहर के बसेरे तो खोने लगे हैं तुझसे 
अब तो लोगों की जूठन भर ही खा पायेगा तू 
बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......

दिन भर चिचियाने की आवाजें आती थी सबको 
मीठी-मीठी बोली हर क्षण लुभाती थी सबको 
आदमी का संग-साथ कब भूल पायेगा तू....
बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......

बस थोड़े से दिन हैं तेरे,अब वो भी गिन ले तू 
चंद साँसे बस बची हैं,जी भरके उनको चुन ले तू.
फिर वापस इस धरती पर नहीं आ पायेगा तू....
बोल रे परिंदे...कहाँ जाएगा तू.......

बुधवार, 21 सितंबर 2011

जो तेरा है वो तेरा तो नहीं है.....!!!



जो तेरा है वो तेरा तो नहीं है,
जो मेरा है वो मेरा तो नहीं है !
जो जितना अच्छा दिखता है 
देखो,वो उतना भला तो नहीं है!
ठीक है,वो चारागर होगा मगर 
बस इतने से वो खुदा तो नहीं है !
नजदीक से देखने से लगता है,
कहीं वो मुझसे जुदा तो नहीं है !
रह-रह कर कुछ टीसता-सा है ,
कहीं मुझको कुछ हुआ तो नहीं है !
कुछ जो भी यहाँ पर गहरा-सा है,
कभी हर्फों में वो बयाँ तो नहीं है !
हर जगह वो मुझसे छुपता है 
कहीं वो मेरा राजदां तो नहीं है !
हर पल बस तेरा नाम लेता हूँ,
ओ मेरे खुदा रे कहाँ तू नहीं है !
हर हद तक जाकर तुझको खोजा 
कहीं तू मेरे दरमियाँ तो नहीं है !
हर्फों का शोर ये समझ ना आये 
कहीं तू हर्फों में ही निहां तो नहीं है !!

रविवार, 11 सितंबर 2011

तेरी रग-रग का हर निशाँ हम पहचानते हैं !!

तेरे आँगन में फाखते चहकें 
उनकी खुशबू से तेरा घर महके !
रोशनी से सराबोर रहे तू हमदम 
तेरे रूबरू हो जाए तीरगी बेदम !
जगमगाती रहें तेरी सारी रातें
याद आती रहें तुझे प्यारी बातें !
खुश रहे तू सदा ओ मेरे हमकदम !
दूर रहकर भी ये दुआ करते हैं हम !
रूह में तेरी है गहरी बातों का आलम 
आँख से तेरी दिखाई देता है हरदम !
००००००००००००००००००००००००००० 
०००००००००००००००००००००००००००
कैसे जीता है तू पल-पल,ये हम जानते हैं 
तेरी खुशियाँ और तेरे गम,हम पहचानते हैं !!
इक ज़माने से तू जिस तन्हाई में जीता है 
तेरी रग-रग का हर निशाँ हम पहचानते हैं !!
जब भी आ जाते हैं तेरी आँख में दो आंसू 
मुहं फिरा कर रोता है तू ये हम जानते हैं !!
याद आ जाता है जब कोई बीता हुआ पल 
तेरे चहरे का हर बदलता रंग हम जानते हैं !!
मेरी आँखों में आँख दाल कर तू हंस दे ज़रा 
होंठ प्यासे हैं तब्बसुम को तेरे,हम जानते हैं !! 

शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

क्या धमाके करने वाले किसी भी कोख से जन्म नहीं लेते !!??

कुछ धमाके होते हैं और 
उन धमाकों के साथ 
कुछ जिंदगियां तमाम....
उन धमाकों में है सन्देश 
किसी तरह की कायरता का 
एक अमानुषिक बर्बरता का 
जिसे धमाके करने वाले 
कहते हैं अपनी ताकत 
जिससे करते हैं वो 
सत्ता के खिलाफ जंग
जिसे कहते हैं वो 
कि यह ज़ुल्म के खिलाफ
जो भी हो मगर उनकी इस 
ताकत या कायरता का शिकार 
बनते हैं कुछ मासूम लोग 
बच्चे-बूढ़े और स्त्रियाँ भी 
जहां होते हैं धमाके 
वहां बिखर जाता है खून
बिछ जाती हैं लाशें और 
तड़पते हैं जीवित शरीर
जिसे देखकर हो जाता है 
हर कोई कातर-निर्विकल्प 
शून्य और संज्ञा रहित.....
और मर्मान्तक तक कहीं 
अतल गहरे में रोते हैं हम....
जिसे कहते हैं हम मानवता 
हम सब किसी ना किसी 
कोख से जन्म लेते हैं.....
क्या धमाके करने वाले 
किसी भी कोख से जन्म नहीं लेते !!??   

बुधवार, 31 अगस्त 2011

यह जो इक दर्द है मेरे भीतर.....!!

यह जो इक दर्द है मेरे भीतर 

जो रह-रह कर कसक रहा है 
सिर्फ इक दर्द ही नहीं है यह दर्द 
मेरे सुदूर कहीं भीतर से आती 
मेरी ही आत्मा की आवाज़ है 
यह जो दर्द है ना मेरा 
सो वो लाइलाज है क्योंकि 
इसका इलाज अब सिर्फ-व्-सिर्फ 
इसके सोचने की दिशा में मेरे द्वारा 
किया जाने वाला कोई भी सद्प्रयास है 
मगर मेरे मुहं से महज इक 
सिसक भरी आवाज़ निकलती है 
और इन अथाह लोगों के शोर 
के बीच कहीं गुम हो जाती है
कभी-कभी तो मेरे ही पास 
लौटकर वापस आ जाती है....
मेरा दर्द और भी बढ़ जाता है 
मेरे भीतर सिसकता रहता है 
कुछ कर नहीं पाता ठीक मेरी तरह 
और गुजरते हुए हर इक पल के साथ 
दर्द बढ़ता जा रहा है विकराल होता 
इस व्यवस्था को बदलने के लिए 
इस बदलाव का वाहक बनने के लिए 
इस बदलाव का संघर्ष करने में 
मैं इक आवाज़ भर मात्र हूँ...
बेशक आवाज़ बहुत बुलंद है मेरी 
मगर किसी काम की नहीं वो 
अगरचे सड़क पर उतर कर वो 
लोगों की आवाज़ बन ना जाए 
चिल्लाते हुए लोगों के संग मिलकर 
एकमय ना हो जाए....
और परिवर्तन की मेरी चाहना 
मेरे कर्मों में परिवर्तित ना जाए 
और बस यही इक दर्द है मेरा 
जो अब बस नहीं,बल्कि बहुत विकराल है 
मेरे भीतर छटपटा रहा है 
हर वक्त और हर इक पलछिन 
किसी क्रान्ति की प्रस्तावना बनने के बजाय 
यह दर्द बस किसी कविता की तरह लिखा जाना है
और महज किसी कविता की तरह पढ़ा जाना है...!! 

बुधवार, 24 अगस्त 2011

सिर्फ एक सूराख है मेरी आँखों के ऐन सामने



सिर्फ एक सूराख है मेरी आँखों के ऐन सामने
और मुझे जो चेहरा दिखाई दे रहा है,वो एकदम से 
बदहवास-आक्रान्त और अनन्त दुखों से भरपूर है 
इस वक्त वो अपने परिवार के साथ एक चौकी पर बैठा है 
सबके-सब माथे-गाल या घुटनों पर हाथ धरे हुए हैं और 
चौकी के ऐन नीचे बह रहा घुटनों भर पानी और 
जिसमें बह रहें हैं बर्तन-भांडे और अन्य क्या-क्या कुछ 
इन सबके साथ बहा रहा जा रहा उसका सामर्थ्य 
उसकी आशा-उसका आत्मविश्वास और उसकी अस्मिता 
फिर भी पता नहीं कि किस अदम्य जिजीविषा के सहारे 
वो सब ताकते रहते हैं निर्विकल्प आसमान की और 
कि शायद उनके उधर ताकने से शायद रुक जाएगा पानी 
बीवी-बच्चे-परिवार और खुद अपनी भूख भीतर से मारती है 
और बाहर से मारा करती है प्रकृति और अन्य बलशाली लोग 
 सिर्फ एक सूराख है मेरी आँखों के ऐन सामने....
जिसमें से मुझे सिर्फ वही एक आदमी दिखाई दे रहा है 
जिसका एक बच्चा इस घनघोर बरसा में चल बसा है भूख से 
पिता खांसता तड़प रहा है और माँ भी गोया चल चुकने को आतुर 
बीवी को भी हालांकि तकलीफ तो बहुत है मगर कुछ कह नहीं पाती 
कि अर्द्धागिनी होने के नाते आदमी के हिस्से के आधे दुखों की हकदार 
दूसरा बच्चा भी भूख-भूख का विलाप कर रहा है मगर शहर बंद है 
और इस तरह बंद है कोई काम करके कुछ भी पाने का कोई रास्ता 
इस तरह इस परिवार में ना जाने कौन-कौन मर जाने को है.....
सिर्फ एक सूराख है मेरी आँखों के ऐन सामने....
मगर मुझे तो यह भी नहीं पता कि मैं इसके भीतर झाँक रहा हूँ 
या यह मेरे भीतर मुझमें से होकर....कि मैं नहीं कर पाता कुछ भी 
किसी सिर्फ एक आदमी की भी दुःख तकलीफ को दूर........
और ऐसे-ऐसे सुराख मेरी आँखों के ऐन सामने 
एक नहीं...हज़ारों-लाखों करोड़ों और अरबों हैं....!!

मंगलवार, 16 अगस्त 2011


अब भी अगर तूफ़ान नहीं आयेगा 
देश फिर कभी खडा ना हो पायेगा !!  
गिरफ्तार करने से क्या होगा उसे 
इससे तो और माहौल बन जाएगा !!
जो लोग"राजपाट"का गुरुर करते हैं 
समय खुद ही उन्हें निगल जाएगा !!
ये वक्त अगर गलत भी है दोस्तों 
ये वक्त भी आखिर बदल जाएगा...!!
ये राजा इक ऐसा कमजोर राजा है 
हालात को संभाल ही नहीं पायेगा !!
चलो "गाफिल"तुम भी राजघाट पे 
सूना है अभी वहां जलजला आयेगा !!

शनिवार, 13 अगस्त 2011

यह पवित्र तिरंगा सिर्फ और सिर्फ हमलोगों का है

इतना भी मत दहाड़ो बाबा वरना 
मूंह से जबान खींच ली जायेगी  !!
बहुत चीत्कार कर रहे हो तुम 
गला ही घोंट दें क्या तुम्हारा ??
समझदारी इसी में है कि
सबके संग और समय के साथ चलो 
बहाव के साथ बहते जाओ....
और बहाव है इस समय में 
भ्रष्टाचार-बेईमानी और नफरत का 
तुम भी वही करो ना 
जो सब कर रहे हैं,यानि कि 
जो जितना भी मजबूत है,वो करे 
औरों पर उतना ही अत्याचार !!
सब तो परमात्मा की संतानें हैं ना 
तुम भी और वे सब भी 
जो कर रहे हैं वह सब,
जो नहीं चाहते तुम सब 
और जो किसी के भी हित में नहीं है !!
ना जाने कौन सा परमात्मा हैं  
उन सब लोगों के भीतर
जो डकार रहे हैं औरों का धन और 
ना जाने कितने ही मासूमों की जान 
ना जाने कौन सा परमात्मा है 
उन सबके भीतर,जो कभी नहीं पसीजता 
जो किसी की भी कराह पर द्रवित नहीं होता 
परमात्मा की इस उत्ताल उदारता पर चकित हूँ मैं 
जिसने गड़ा है कुछ ऐसी आत्माओं को धरती पर 
जो इतने ताकतवर हैं कि अपनी ताकत का गुमान 
उन्हें कभी आदमी ही नहीं बना रहने देता 
एक अहंकारी,कपटी,स्वार्थी,लोभी और 
अनंत वासना से भरा एक अंधा हैवान !!
जिसे यह भी नहीं दिखाई देता कभी 
कि उसके कार्यों के परिणामस्वरूप जनता 
उसके बच्चों के साथ कैसा सलूक करेगी 
जिन्हें पैदा किया उसने और प्यार करता है जिन्हें वो बहुत 
उसे तो यह भी नहीं पता कि जब लौट कर आयेगा 
उसका ही किया धरा उसीपर जब उसका सबकुछ 
तब वो अश्वथामा का भविष्य पायेगा या उसकी संतानें !!
जो भी हो मगर आज वह है इतना ताकतवर और अंधा-बहरा 
कि कोई नसीहत-कोई पुकार यहाँ तक कि कोई आर्तनाद 
उसकी आत्मा या उसके परमात्मा तक पहुँच ही नहीं पाता
तो फिर आओ दोस्तों आज हम करें एक शंखनाद 
और चढ़ा दें उनके टैंक उन्हीं लोगों के शरीरों पर 
जिन्हें सौंपा है गलती से हमने अपना देश 
और मसल डालें आज उन्हें उन मच्छरों की तरह 
जो सारी रात और सारा दिन पीते रहते हैं हमारा खून 
जोर से आवाज़ दो सब मिलकर बन्दे-मातरम्.....!!!
और ख़ाक में मिला दो इन सारे खूनी हैवानों को 
जो सफेदपोशों की शक्ल में तुम्हारे आसपास,तुम्हारे बीच 
कि अब यह पवित्र तिरंगा सिर्फ और सिर्फ हमलोगों का है 
जिसे किसी चोरों-डकैतों को फहराने नहीं  दिया जा सकता.....!!!

 

चला दे जनरल अपनी टैंक हम पर....

अबे.... ज्यादा चीख पुकार मत कर
बुलडोजर है उनके पास..चढ़ा देंगे वे तुझपर 
इतनी चिल्लम पौं मत दिखा 
टैंक है उनके पास....उड़ा देंगे वे तुझे
भले ही भेजा है तुने ही वहां उन्हें 
मगर हो चुकी है अब गलती तुझसे 
वो बन चुके हैं सबके राजा 
अब अगर उनको हटाना ही है वहां से 
तो सिर्फ एक अनशन कारगर नहीं है....
अगर याद नहीं हो तुझे तो याद करा दूं 
गांधी के सत्याग्रह के साथ ही साथ कहीं 
सुभाष,भगत,चंद्रशेखर,राजगुरु,बिरसा का भी 
हिंसक आन्दोलन चला करता था 
और कोई नहीं था एक-दूसरे का विरोधी 
सब अपना-अपना कार्यक्रम रचते थे....
असल में ओ पगले...
राजा लोग राज करते-करते 
गैंडे या मगरमच्छ की तरह 
मोटी खाल के हो जाया करते हैं और 
होता नहीं है तब उनपर बातों का असर
इसलिए कह रहा हूँ तुझे 
कि उठा अपना डंडा 
और तब देख तू अपनी लातों का असर 
ये जालिम लोग तब तक नहीं मानेंगे 
जब तक कि तू दिखा ना दे अपनी ताकत 
और जता ना दे तू अपनी हिम्मत 
चल खडा हो जा और निकाल अपना तमंचा 
और कह दे अभी कि अभी 
चला दे जनरल अपनी टैंक हम पर 
कितने गोले होंगे साले तेरे पास 
चल बरसा दे अपने गोलों को हम पर 
हम चले आ रहे हैं करोडो.....
अरे नहीं-नहीं...अरबों-अरब तेरे पास !! 
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बुधवार, 10 अगस्त 2011

हर चीज़ से झांका करता है हमारा चरित्र !!


हर चीज़ से झांका करता है हमारा चरित्र !!
राह में चलते हुए कहीं पर भी थूक देते हुए.....
अपने घर या दूकान को बुहार कर 
उसका कूड़ा सड़क पर फ़ेंक देते हुए....
कहीं भी अपना वाहन कैसे भी खडा कर
पूरा रास्ता जाम कर देते हुए....
किसी भी कमजोर,बृद्ध,बच्चे या स्त्री 
के साथ असामान्य व्यवहार करते हुए.... 
किसी जान को फटकारते हुए या 
किसी भीखमंगे को दुत्कारते हुए....
अपने नौकर या दाई को लतियाते हुए....
किसी भी कन्या-स्त्री-युवती को घूरते हुए 
किसी भी बात पर सीधे झगड़ने को आतुर होते 
खुद जो धत्त्करम कर रहे हैं हम...
ठीक उसी कार्य को किसी और के करने पर 
उसकी ऐसी की तैसी करते हुए....
स्त्रियों की दलाली करते हुए.....
लालच के लिए खाने की चीज़ों और 
यहाँ तक कि दवाओं में मिलावट करते हुए....
लोगों के अंगों की तस्करी करते हुए....
जमाखोरी या कालाबाजारी करते हुए...  
समूचे देश को अपने थूकों का गटर 
सारी सडकों को अपने कूड़े का ढेर बनाते हुए 
तरह-तरह के षड़यंत्र करते हुए......
यह लिस्ट बहुत ही लम्बी है....
थोड़े लिखे को ज्यादा समझ लेना 
कि हर वक्त हुक्मरानों को गरियाते हुए हम 
मोहल्ले-शहर-राज्य-देश में रहने वाले हम सब 
खुद भी किस चरित्र के हैं....यह ज़रा झाँक लें 
नेताओं-मंत्रियों-अफसरों से कम या ज्यादा.....??
हम जो प्रति क्षण करते हैं हैं दोस्तों 
उस हर-एक बात से झांकता है हमारा चरित्र....!!
हम सब यदि कर सकें खुद की ज़रा-सी भी रद्दो-बदल
तो बदल सकता है इस देश का चरित्र....
कि सिर्फ गरियाने से कुछ भी नहीं बदलेगा....
जिस किसी भी चीज़ में थोड़े से भी जिम्मेदार हैं हम 
उसकी जिम्मेदारी हमें खुद को लेनी होगी 
और बदल डालना होगा खुद को उसकी खातिर 
हमारी हर बात से झांका करता है हमारा चरित्र.....
और यह बात शायद हम नहीं जानते.....!! 

रविवार, 7 अगस्त 2011

अगर आप इसे कविता ना भी समझो.....!!

अगर आप इसे कविता ना भी समझो......!!
तकलीफ इस बात की नहीं है कि
बे-ईमानों से बेतरह घिरे हुए हैं हम 
तकलीफ तो इस बात की है कि 
इस भीड़ में कहीं-ना-कहीं हम खुद भी शामिल हैं !
तकलीफ इस बात की नहीं है कि
कि बेलगाम हो चुका यह हरामखोर भ्रष्टाचार 
तकलीफ तो इस बात की है कि 
हम समझ नहीं पा रहे हैं खुद की ताकत 
और इस गहन समय की गहरी गंभीरता !
हम स्वयम ही दिए जा रहे हैं तरह की घूस 
और स्वयं ही पीड़ा का स्वांग भी भर रहे हैं 
हाँ यह स्वांग ही तो है कि 
हममे से ही चुन-चुन कर जा रहे हैं वहां लोग 
जो तत्काल ही बे-ईमान हो जा रहे हैं 
हमें अब यह सोचना ही होगा कि 
कहीं-ना-कहीं हमारे खून में ही कोई खराबी है 
कि पलक झपकते ही नहीं हो जाया करता हरामी 
खाता भी जाए और थाली में छेड़ भी करता जाए !
हमें अब सोचना ही होगा कि हमारी रगों में 
शायद खून नहीं कुछ और ही बह रहा है !
तकलीफ इस बात की नहीं है कि
स्विस बैंकों में लूटे पड़े हैं हमारे इतने लाख करोड़ 
तकलीफ तो इस बात की है कि 
यह बात एकदम से साबित होते हुए भी कुछ होने को नहीं है !
भ्रष्टाचार की बाबत हमारी चिंताएं 
महज कोरी बातें हैं....अगंभीर गप्पें !
और ये गप्पें भी ऐसी हैं कि कभी ख़त्म होने को नहीं आती 
टी.वी.के सामने कुरकुरे खाते हुए 
किसी पान दूकान या चौराहे पर बतियाते हुए 
किसी काफी हाऊस में चाय की चुस्कियों के साथ 
हवा में हाथ घुमाते और हरामियों को लतियाते !
यह सब अब इतना ऊबाऊ हो चुका कि जैसे 
हमारा होना ही फिजूल हो चुका हो ओ !
हमारे चेहरे पर हमारी आँख हैं अगरचे हम
तो भ्रष्टाचार हमारी खुद की नाक से छु रहा है 
हमारी दोनों खुली हुई आँखों के ऐन नीचे 
और बे-इमानी हमारी जीभ से टपक रही है 
अनवरत लार की तरह 
हम जो कहे जा रहे हैं लगातार भ्रष्टाचार के खिलाफ 
वो बिना किसी अर्थ के महज एक बक-बक है 
क्योंकि हमारा खुद का चरित्र भी कुछ 
इसी तरह के गुणों से ही लकदक है 
तकलीफ इस बात की नहीं है कि
इस सबके खिलाफ हम कर नहीं पा रहे हैं 
तकलीफ तो इस बात की है कि 
ऐसा करने वालों को हम अब भी 
मंचों पर आसीन करवा रहें हैं 
उन्हें अब भी फूल-मालाएं पहना रहे हैं 
अपने स्वार्थ से वशीभूत होकर कहीं-कहीं तो 
हम उनकी चालीसा भी बना-बना कर गा रहे हैं !!
अब तो यह लगने लगा है कि हमारी तकलीफ 
दरअसल हमारा एक प्रोपगंडा है
किसी घोंघे की तरह अपनी खोल में दुबक जाने की 
जान-बूझ कर की गयी एक बेशर्म कवायद 
कि हमारी खाल भी बची रहे
और एक आन्दोलन का वहम भी बना रहे !!
तकलीफ इस बात की भी नहीं है कि
हमारे भीतर नहीं बचा हुआ कोई जूनून 
तकलीफ तो इस बात की है कि 
हम आवाज़ दे रहे हैं सबको कि आओ बाहर निकलो 
और खुद किसी ना तरह की सुख-सेज पर रति-रत हुए जा रहे हैं !!
मुझे गहरी उम्मीद है कि हमसे कुछ नहीं है होने-जाने को 
हम तो बस अपने-अपने दडबों में बंद बस चिल्ला रहे हैं 
जैसे किसी ऐ.आर रहमान का कोई कोरस-गान गा रहे हैं ! 
तकलीफ इस बात की भी नहीं है कि
इतना कुछ होता जा रहा है हमारे होते हुए हमारे खिलाफ 
तकलीफ तो इस बात की है कि 
हम तो ठीक तरीके से इसे देख भी नहीं पा रहे हैं 
जब ताल ठोक कर आ जाना चाहिए हमें ऐन सड़क पर 
और लगानी चाहिए अपने हथियारों पर धार 
और हो जाना चाहिए खुद के मरने को तैयार 
हम किसी गोष्ठी में बैठकर 
किसी फेस-बुक या किसी ब्लॉग में घुसकर 
हल्ला-बोल....हल्ला-बोल चिल्ला रहे हैं !!!!

गम ना होता मगर तो भला ख़ुशी होती कैसे !!

किसी को बता नहीं सकता कि कैसे-कैसे 
हमने भी देखे हैं दोस्तों मंज़र ऐसे-ऐसे !! 
नज़रों से बचने की उफ़ उसकी ये अदा 
आसमा को भी किनारा कर रहा हो जैसे !!
कोई सितारा टूट कर गिर ना जाए कहीं 
क्या बताऊँ करता है वो इशारा कैसे-कैसे !!
उसे देखा है मैंने लाज़वाब होकर अक्सर 
उसे देखना मज़ा ही कुछ देता है ऐसे-ऐसे !!
खुशियों से भरा कित्ता अच्छा लगता है ना 
गम ना होता मगर तो भला ख़ुशी होती कैसे !!
तेरी दीद में इस कदर बिछा रखी है मैंने नज़र 
राह में जलता हुआ कोई दीया रखा हो जैसे !!
तुझे नज़र भर-भर देखना चाहता हूँ ओ यारब 
तू मगर मिरी नज़र में समाए तो समाए कैसे !! 

रविवार, 31 जुलाई 2011

अब इन लोगों को तौल दो.....!!

जिनको मिटाना चाहते हैं 
उन्हें तो मंच पर बिठाते हैं हम....
मंच भरभराकर गिर नहीं जाता, 
यह क्या कम बड़ी गनीमत है !!
जिन्हें मारने चाहिए जूते 
स्वागत होता है उनका फूलमालाओं से 
फूल कुम्भला नहीं जाते उनके गले में 
यह क्या कम बड़ी गनीमत है !!
जो बने हुए हैं सभी के तारणहार 
वो दरअसल गए-बीते हैं राक्षसों से भी 
कि राक्षस भी लजाकर मर-मुरा जाएँ,
इस धरती पर बस इसी एक डर से 
राक्षस लोग नहीं आया करते 
यह क्या कम बड़ी गनीमत है !!
जिनको होना चाहिए सलाखों के भीतर 
वो क़ानून बना रहे हैं हमलोगों का और 
चूस-चूस कर बिलकुल अधमरा कर दिया जिन्होंने देश 
उनके हाथों में हैं कल्याणकारी योजनायें हमारे लिए 
लेकिन दोस्तों एक बात मैं आप सबको बताता चलूँ 
कि कोई हाथ कितना भी मज़बूत क्यों ना हो,
तोड़ा जा सकता है,गर वो देश का दामन करे तार-तार !!
और लटकाया जा सकता उन्हें भी फांसी पर 
जो लेते रहें हैं लाखों बेकसूरों की जान !!
हमारे हाथ में हमारे "मत" का डंडा है दोस्तों 
और यह भी हमारे ही हाथ में ही है कि 
हम चरने ना दें इन पेटू भैसों और सांडों को 
अपने इस प्यारे से वतन का खेत......
और दोस्तों मैं आपको बताता हूँ कि इसके लिए 
हमें दरअसल कुछ नहीं करना है,बस हमें अपने इस डंडे को 
सचमुच में एक डंडे की तरह "यूज" कर लेना है 
आईये आज से अपनी इस लाठी को हम तेल पिलायें 
और विदेशी बैंकों में पैसे रखने वालों को 
मार-मार कर विदेश ही भगाएं.....!!
मार-मार कर हम इनके "चूतड" ऐसे कर दें लाल-लाल 
कि इनकी आने वाली नस्लें भी हो जाएँ बेहाल !!
अपनी लाठी खड़ी करो और हल्ला बोल दो 
सारे देश-द्रोहियों  की "औकात" को एकदम से तौल दो !!

बुधवार, 13 जुलाई 2011

बीती बात को जाने दे........!!



बीती बात को जाने दे !!

बीती बात को जाने दे

नए समय को आने दे !

समय बड़ा नादाँ है

बच्चों-सा समझाने दे !

यार अब कैसा है तू

उसको भी बतलाने दे !

बड़ा ही अच्छा लगता है

बुरे समय को आने दे !

कन्नी काट ना मुझसे तू

मुझसे ना कतराने दे !

इतना बुरा नहीं "गाफिल"

ख़ुद को पास तो आने दे !!

य काफिया और रदीफ़ तो हटा दे जाहिद ,ज़रा मेरे हर्फ़ ग़ज़ल में समां जायें !!
जिंदगी का हर लम्हा ही एक मकता है ,हर शै के बाद दूसरी शै ही आ जाए !!
मुश्किलों ने हमसे कर ली है अब तौबा, अब अगर जो वो रास्ते में आ जाए !!
उम्र को ही पैराहन की तरह ओढ़ा हुआ है,मौत जब आए,इसी में समां जाए !!
अब तो तू ही तू नज़र आता है यारब,जहाँ में जहाँ-जहाँ तक मेरी नज़र जाए !!
हम हर्फ़ को ही खुदा समझाते हैं यारा,हर हर्फ़ की ही जद में खुदा आ जाए !!
इक जरा मन को कडा कर लीजिये ,हर फिक्र धूल में उड़ती ही नज़र आए !!
इतनी कड़ी निगाहों से ना देखिये हमें,कहीं खुदा ही घबरा कर ना आ जाए !!
दुनिया में रसूख उसी का होता है,जिसे,रसूख की फिक्र कभी भी ना सताए !!
सिर्फ़ मुहब्बत का भूखा हूँ"गाफिल",प्यार से मुझे कोई कुछ भी खिला जाए !!

हम हर जगह क्या-क्या ढूंढा करें....
किसी के भी पास में सहारा ढूँढा करें !!
मालुम है कि ख्वाब टूट जाते हैं मगर ,
दिन-रात कोई-न-कोई ख्वाब सब बुना करें !!
अच्छा जो भी है अपनी जगह वो पायेगा ,
अच्छा हो कि हम अच्छों को चुना करें !!
आदमियों के बीच भी वीराना लगता है ,
बेहतर हो कि हम तनहा ही घूमा करें !!
सबसे बड़ा खुदा है...और खुदा ही रहेगा ,
क्यों बन्दों में हम बड़प्पन के गुण ढूंढा करें !!
सद्गुण ही काम आयेंगे तुमको ऐ "गाफिल" ,
जो गुण हम इक इंसान में हरदम ढूंढा करें !!

जो तुम पढ़ते हो मेरे चहरे पर...
कोशिश बहुत करता हूँ छुपाने की !!
हरदम हंसता रहता हूँ ना मैं...
तो कोशिश करो मुझे रुलाने की..!!
जिन्दगी तो हर किसी की गोया..
ख्वाब हो इक पागल दीवाने की !!
चेहरे की लकीरें उसकी हैं ऐसी...
छिपने की और ना छिपाने की !!
जिन्दगी जीने की खातिर भईया
जरुरत है किसी नए बहाने की !!
ख्वाब-ख्वाब..ख़याल-ख़याल...बस
हयात है महज इक अफ़साने सी !!
अब तो जरुरत है भाई "गाफिल"
तुझको भी यहाँ से भाग जाने की !!