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बुधवार, 31 अगस्त 2011

यह जो इक दर्द है मेरे भीतर.....!!

यह जो इक दर्द है मेरे भीतर 

जो रह-रह कर कसक रहा है 
सिर्फ इक दर्द ही नहीं है यह दर्द 
मेरे सुदूर कहीं भीतर से आती 
मेरी ही आत्मा की आवाज़ है 
यह जो दर्द है ना मेरा 
सो वो लाइलाज है क्योंकि 
इसका इलाज अब सिर्फ-व्-सिर्फ 
इसके सोचने की दिशा में मेरे द्वारा 
किया जाने वाला कोई भी सद्प्रयास है 
मगर मेरे मुहं से महज इक 
सिसक भरी आवाज़ निकलती है 
और इन अथाह लोगों के शोर 
के बीच कहीं गुम हो जाती है
कभी-कभी तो मेरे ही पास 
लौटकर वापस आ जाती है....
मेरा दर्द और भी बढ़ जाता है 
मेरे भीतर सिसकता रहता है 
कुछ कर नहीं पाता ठीक मेरी तरह 
और गुजरते हुए हर इक पल के साथ 
दर्द बढ़ता जा रहा है विकराल होता 
इस व्यवस्था को बदलने के लिए 
इस बदलाव का वाहक बनने के लिए 
इस बदलाव का संघर्ष करने में 
मैं इक आवाज़ भर मात्र हूँ...
बेशक आवाज़ बहुत बुलंद है मेरी 
मगर किसी काम की नहीं वो 
अगरचे सड़क पर उतर कर वो 
लोगों की आवाज़ बन ना जाए 
चिल्लाते हुए लोगों के संग मिलकर 
एकमय ना हो जाए....
और परिवर्तन की मेरी चाहना 
मेरे कर्मों में परिवर्तित ना जाए 
और बस यही इक दर्द है मेरा 
जो अब बस नहीं,बल्कि बहुत विकराल है 
मेरे भीतर छटपटा रहा है 
हर वक्त और हर इक पलछिन 
किसी क्रान्ति की प्रस्तावना बनने के बजाय 
यह दर्द बस किसी कविता की तरह लिखा जाना है
और महज किसी कविता की तरह पढ़ा जाना है...!! 

बुधवार, 24 अगस्त 2011

सिर्फ एक सूराख है मेरी आँखों के ऐन सामने



सिर्फ एक सूराख है मेरी आँखों के ऐन सामने
और मुझे जो चेहरा दिखाई दे रहा है,वो एकदम से 
बदहवास-आक्रान्त और अनन्त दुखों से भरपूर है 
इस वक्त वो अपने परिवार के साथ एक चौकी पर बैठा है 
सबके-सब माथे-गाल या घुटनों पर हाथ धरे हुए हैं और 
चौकी के ऐन नीचे बह रहा घुटनों भर पानी और 
जिसमें बह रहें हैं बर्तन-भांडे और अन्य क्या-क्या कुछ 
इन सबके साथ बहा रहा जा रहा उसका सामर्थ्य 
उसकी आशा-उसका आत्मविश्वास और उसकी अस्मिता 
फिर भी पता नहीं कि किस अदम्य जिजीविषा के सहारे 
वो सब ताकते रहते हैं निर्विकल्प आसमान की और 
कि शायद उनके उधर ताकने से शायद रुक जाएगा पानी 
बीवी-बच्चे-परिवार और खुद अपनी भूख भीतर से मारती है 
और बाहर से मारा करती है प्रकृति और अन्य बलशाली लोग 
 सिर्फ एक सूराख है मेरी आँखों के ऐन सामने....
जिसमें से मुझे सिर्फ वही एक आदमी दिखाई दे रहा है 
जिसका एक बच्चा इस घनघोर बरसा में चल बसा है भूख से 
पिता खांसता तड़प रहा है और माँ भी गोया चल चुकने को आतुर 
बीवी को भी हालांकि तकलीफ तो बहुत है मगर कुछ कह नहीं पाती 
कि अर्द्धागिनी होने के नाते आदमी के हिस्से के आधे दुखों की हकदार 
दूसरा बच्चा भी भूख-भूख का विलाप कर रहा है मगर शहर बंद है 
और इस तरह बंद है कोई काम करके कुछ भी पाने का कोई रास्ता 
इस तरह इस परिवार में ना जाने कौन-कौन मर जाने को है.....
सिर्फ एक सूराख है मेरी आँखों के ऐन सामने....
मगर मुझे तो यह भी नहीं पता कि मैं इसके भीतर झाँक रहा हूँ 
या यह मेरे भीतर मुझमें से होकर....कि मैं नहीं कर पाता कुछ भी 
किसी सिर्फ एक आदमी की भी दुःख तकलीफ को दूर........
और ऐसे-ऐसे सुराख मेरी आँखों के ऐन सामने 
एक नहीं...हज़ारों-लाखों करोड़ों और अरबों हैं....!!

मंगलवार, 16 अगस्त 2011


अब भी अगर तूफ़ान नहीं आयेगा 
देश फिर कभी खडा ना हो पायेगा !!  
गिरफ्तार करने से क्या होगा उसे 
इससे तो और माहौल बन जाएगा !!
जो लोग"राजपाट"का गुरुर करते हैं 
समय खुद ही उन्हें निगल जाएगा !!
ये वक्त अगर गलत भी है दोस्तों 
ये वक्त भी आखिर बदल जाएगा...!!
ये राजा इक ऐसा कमजोर राजा है 
हालात को संभाल ही नहीं पायेगा !!
चलो "गाफिल"तुम भी राजघाट पे 
सूना है अभी वहां जलजला आयेगा !!

शनिवार, 13 अगस्त 2011

यह पवित्र तिरंगा सिर्फ और सिर्फ हमलोगों का है

इतना भी मत दहाड़ो बाबा वरना 
मूंह से जबान खींच ली जायेगी  !!
बहुत चीत्कार कर रहे हो तुम 
गला ही घोंट दें क्या तुम्हारा ??
समझदारी इसी में है कि
सबके संग और समय के साथ चलो 
बहाव के साथ बहते जाओ....
और बहाव है इस समय में 
भ्रष्टाचार-बेईमानी और नफरत का 
तुम भी वही करो ना 
जो सब कर रहे हैं,यानि कि 
जो जितना भी मजबूत है,वो करे 
औरों पर उतना ही अत्याचार !!
सब तो परमात्मा की संतानें हैं ना 
तुम भी और वे सब भी 
जो कर रहे हैं वह सब,
जो नहीं चाहते तुम सब 
और जो किसी के भी हित में नहीं है !!
ना जाने कौन सा परमात्मा हैं  
उन सब लोगों के भीतर
जो डकार रहे हैं औरों का धन और 
ना जाने कितने ही मासूमों की जान 
ना जाने कौन सा परमात्मा है 
उन सबके भीतर,जो कभी नहीं पसीजता 
जो किसी की भी कराह पर द्रवित नहीं होता 
परमात्मा की इस उत्ताल उदारता पर चकित हूँ मैं 
जिसने गड़ा है कुछ ऐसी आत्माओं को धरती पर 
जो इतने ताकतवर हैं कि अपनी ताकत का गुमान 
उन्हें कभी आदमी ही नहीं बना रहने देता 
एक अहंकारी,कपटी,स्वार्थी,लोभी और 
अनंत वासना से भरा एक अंधा हैवान !!
जिसे यह भी नहीं दिखाई देता कभी 
कि उसके कार्यों के परिणामस्वरूप जनता 
उसके बच्चों के साथ कैसा सलूक करेगी 
जिन्हें पैदा किया उसने और प्यार करता है जिन्हें वो बहुत 
उसे तो यह भी नहीं पता कि जब लौट कर आयेगा 
उसका ही किया धरा उसीपर जब उसका सबकुछ 
तब वो अश्वथामा का भविष्य पायेगा या उसकी संतानें !!
जो भी हो मगर आज वह है इतना ताकतवर और अंधा-बहरा 
कि कोई नसीहत-कोई पुकार यहाँ तक कि कोई आर्तनाद 
उसकी आत्मा या उसके परमात्मा तक पहुँच ही नहीं पाता
तो फिर आओ दोस्तों आज हम करें एक शंखनाद 
और चढ़ा दें उनके टैंक उन्हीं लोगों के शरीरों पर 
जिन्हें सौंपा है गलती से हमने अपना देश 
और मसल डालें आज उन्हें उन मच्छरों की तरह 
जो सारी रात और सारा दिन पीते रहते हैं हमारा खून 
जोर से आवाज़ दो सब मिलकर बन्दे-मातरम्.....!!!
और ख़ाक में मिला दो इन सारे खूनी हैवानों को 
जो सफेदपोशों की शक्ल में तुम्हारे आसपास,तुम्हारे बीच 
कि अब यह पवित्र तिरंगा सिर्फ और सिर्फ हमलोगों का है 
जिसे किसी चोरों-डकैतों को फहराने नहीं  दिया जा सकता.....!!!

 

चला दे जनरल अपनी टैंक हम पर....

अबे.... ज्यादा चीख पुकार मत कर
बुलडोजर है उनके पास..चढ़ा देंगे वे तुझपर 
इतनी चिल्लम पौं मत दिखा 
टैंक है उनके पास....उड़ा देंगे वे तुझे
भले ही भेजा है तुने ही वहां उन्हें 
मगर हो चुकी है अब गलती तुझसे 
वो बन चुके हैं सबके राजा 
अब अगर उनको हटाना ही है वहां से 
तो सिर्फ एक अनशन कारगर नहीं है....
अगर याद नहीं हो तुझे तो याद करा दूं 
गांधी के सत्याग्रह के साथ ही साथ कहीं 
सुभाष,भगत,चंद्रशेखर,राजगुरु,बिरसा का भी 
हिंसक आन्दोलन चला करता था 
और कोई नहीं था एक-दूसरे का विरोधी 
सब अपना-अपना कार्यक्रम रचते थे....
असल में ओ पगले...
राजा लोग राज करते-करते 
गैंडे या मगरमच्छ की तरह 
मोटी खाल के हो जाया करते हैं और 
होता नहीं है तब उनपर बातों का असर
इसलिए कह रहा हूँ तुझे 
कि उठा अपना डंडा 
और तब देख तू अपनी लातों का असर 
ये जालिम लोग तब तक नहीं मानेंगे 
जब तक कि तू दिखा ना दे अपनी ताकत 
और जता ना दे तू अपनी हिम्मत 
चल खडा हो जा और निकाल अपना तमंचा 
और कह दे अभी कि अभी 
चला दे जनरल अपनी टैंक हम पर 
कितने गोले होंगे साले तेरे पास 
चल बरसा दे अपने गोलों को हम पर 
हम चले आ रहे हैं करोडो.....
अरे नहीं-नहीं...अरबों-अरब तेरे पास !! 
http://baatpuraanihai.blogspot.com/

बुधवार, 10 अगस्त 2011

हर चीज़ से झांका करता है हमारा चरित्र !!


हर चीज़ से झांका करता है हमारा चरित्र !!
राह में चलते हुए कहीं पर भी थूक देते हुए.....
अपने घर या दूकान को बुहार कर 
उसका कूड़ा सड़क पर फ़ेंक देते हुए....
कहीं भी अपना वाहन कैसे भी खडा कर
पूरा रास्ता जाम कर देते हुए....
किसी भी कमजोर,बृद्ध,बच्चे या स्त्री 
के साथ असामान्य व्यवहार करते हुए.... 
किसी जान को फटकारते हुए या 
किसी भीखमंगे को दुत्कारते हुए....
अपने नौकर या दाई को लतियाते हुए....
किसी भी कन्या-स्त्री-युवती को घूरते हुए 
किसी भी बात पर सीधे झगड़ने को आतुर होते 
खुद जो धत्त्करम कर रहे हैं हम...
ठीक उसी कार्य को किसी और के करने पर 
उसकी ऐसी की तैसी करते हुए....
स्त्रियों की दलाली करते हुए.....
लालच के लिए खाने की चीज़ों और 
यहाँ तक कि दवाओं में मिलावट करते हुए....
लोगों के अंगों की तस्करी करते हुए....
जमाखोरी या कालाबाजारी करते हुए...  
समूचे देश को अपने थूकों का गटर 
सारी सडकों को अपने कूड़े का ढेर बनाते हुए 
तरह-तरह के षड़यंत्र करते हुए......
यह लिस्ट बहुत ही लम्बी है....
थोड़े लिखे को ज्यादा समझ लेना 
कि हर वक्त हुक्मरानों को गरियाते हुए हम 
मोहल्ले-शहर-राज्य-देश में रहने वाले हम सब 
खुद भी किस चरित्र के हैं....यह ज़रा झाँक लें 
नेताओं-मंत्रियों-अफसरों से कम या ज्यादा.....??
हम जो प्रति क्षण करते हैं हैं दोस्तों 
उस हर-एक बात से झांकता है हमारा चरित्र....!!
हम सब यदि कर सकें खुद की ज़रा-सी भी रद्दो-बदल
तो बदल सकता है इस देश का चरित्र....
कि सिर्फ गरियाने से कुछ भी नहीं बदलेगा....
जिस किसी भी चीज़ में थोड़े से भी जिम्मेदार हैं हम 
उसकी जिम्मेदारी हमें खुद को लेनी होगी 
और बदल डालना होगा खुद को उसकी खातिर 
हमारी हर बात से झांका करता है हमारा चरित्र.....
और यह बात शायद हम नहीं जानते.....!! 

रविवार, 7 अगस्त 2011

अगर आप इसे कविता ना भी समझो.....!!

अगर आप इसे कविता ना भी समझो......!!
तकलीफ इस बात की नहीं है कि
बे-ईमानों से बेतरह घिरे हुए हैं हम 
तकलीफ तो इस बात की है कि 
इस भीड़ में कहीं-ना-कहीं हम खुद भी शामिल हैं !
तकलीफ इस बात की नहीं है कि
कि बेलगाम हो चुका यह हरामखोर भ्रष्टाचार 
तकलीफ तो इस बात की है कि 
हम समझ नहीं पा रहे हैं खुद की ताकत 
और इस गहन समय की गहरी गंभीरता !
हम स्वयम ही दिए जा रहे हैं तरह की घूस 
और स्वयं ही पीड़ा का स्वांग भी भर रहे हैं 
हाँ यह स्वांग ही तो है कि 
हममे से ही चुन-चुन कर जा रहे हैं वहां लोग 
जो तत्काल ही बे-ईमान हो जा रहे हैं 
हमें अब यह सोचना ही होगा कि 
कहीं-ना-कहीं हमारे खून में ही कोई खराबी है 
कि पलक झपकते ही नहीं हो जाया करता हरामी 
खाता भी जाए और थाली में छेड़ भी करता जाए !
हमें अब सोचना ही होगा कि हमारी रगों में 
शायद खून नहीं कुछ और ही बह रहा है !
तकलीफ इस बात की नहीं है कि
स्विस बैंकों में लूटे पड़े हैं हमारे इतने लाख करोड़ 
तकलीफ तो इस बात की है कि 
यह बात एकदम से साबित होते हुए भी कुछ होने को नहीं है !
भ्रष्टाचार की बाबत हमारी चिंताएं 
महज कोरी बातें हैं....अगंभीर गप्पें !
और ये गप्पें भी ऐसी हैं कि कभी ख़त्म होने को नहीं आती 
टी.वी.के सामने कुरकुरे खाते हुए 
किसी पान दूकान या चौराहे पर बतियाते हुए 
किसी काफी हाऊस में चाय की चुस्कियों के साथ 
हवा में हाथ घुमाते और हरामियों को लतियाते !
यह सब अब इतना ऊबाऊ हो चुका कि जैसे 
हमारा होना ही फिजूल हो चुका हो ओ !
हमारे चेहरे पर हमारी आँख हैं अगरचे हम
तो भ्रष्टाचार हमारी खुद की नाक से छु रहा है 
हमारी दोनों खुली हुई आँखों के ऐन नीचे 
और बे-इमानी हमारी जीभ से टपक रही है 
अनवरत लार की तरह 
हम जो कहे जा रहे हैं लगातार भ्रष्टाचार के खिलाफ 
वो बिना किसी अर्थ के महज एक बक-बक है 
क्योंकि हमारा खुद का चरित्र भी कुछ 
इसी तरह के गुणों से ही लकदक है 
तकलीफ इस बात की नहीं है कि
इस सबके खिलाफ हम कर नहीं पा रहे हैं 
तकलीफ तो इस बात की है कि 
ऐसा करने वालों को हम अब भी 
मंचों पर आसीन करवा रहें हैं 
उन्हें अब भी फूल-मालाएं पहना रहे हैं 
अपने स्वार्थ से वशीभूत होकर कहीं-कहीं तो 
हम उनकी चालीसा भी बना-बना कर गा रहे हैं !!
अब तो यह लगने लगा है कि हमारी तकलीफ 
दरअसल हमारा एक प्रोपगंडा है
किसी घोंघे की तरह अपनी खोल में दुबक जाने की 
जान-बूझ कर की गयी एक बेशर्म कवायद 
कि हमारी खाल भी बची रहे
और एक आन्दोलन का वहम भी बना रहे !!
तकलीफ इस बात की भी नहीं है कि
हमारे भीतर नहीं बचा हुआ कोई जूनून 
तकलीफ तो इस बात की है कि 
हम आवाज़ दे रहे हैं सबको कि आओ बाहर निकलो 
और खुद किसी ना तरह की सुख-सेज पर रति-रत हुए जा रहे हैं !!
मुझे गहरी उम्मीद है कि हमसे कुछ नहीं है होने-जाने को 
हम तो बस अपने-अपने दडबों में बंद बस चिल्ला रहे हैं 
जैसे किसी ऐ.आर रहमान का कोई कोरस-गान गा रहे हैं ! 
तकलीफ इस बात की भी नहीं है कि
इतना कुछ होता जा रहा है हमारे होते हुए हमारे खिलाफ 
तकलीफ तो इस बात की है कि 
हम तो ठीक तरीके से इसे देख भी नहीं पा रहे हैं 
जब ताल ठोक कर आ जाना चाहिए हमें ऐन सड़क पर 
और लगानी चाहिए अपने हथियारों पर धार 
और हो जाना चाहिए खुद के मरने को तैयार 
हम किसी गोष्ठी में बैठकर 
किसी फेस-बुक या किसी ब्लॉग में घुसकर 
हल्ला-बोल....हल्ला-बोल चिल्ला रहे हैं !!!!

गम ना होता मगर तो भला ख़ुशी होती कैसे !!

किसी को बता नहीं सकता कि कैसे-कैसे 
हमने भी देखे हैं दोस्तों मंज़र ऐसे-ऐसे !! 
नज़रों से बचने की उफ़ उसकी ये अदा 
आसमा को भी किनारा कर रहा हो जैसे !!
कोई सितारा टूट कर गिर ना जाए कहीं 
क्या बताऊँ करता है वो इशारा कैसे-कैसे !!
उसे देखा है मैंने लाज़वाब होकर अक्सर 
उसे देखना मज़ा ही कुछ देता है ऐसे-ऐसे !!
खुशियों से भरा कित्ता अच्छा लगता है ना 
गम ना होता मगर तो भला ख़ुशी होती कैसे !!
तेरी दीद में इस कदर बिछा रखी है मैंने नज़र 
राह में जलता हुआ कोई दीया रखा हो जैसे !!
तुझे नज़र भर-भर देखना चाहता हूँ ओ यारब 
तू मगर मिरी नज़र में समाए तो समाए कैसे !!