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सोमवार, 28 मई 2012

बहुत दिनों से चाहर रहा हूँ लिखना एक कविता

बहुत दिनों से चाहर रहा हूँ लिखना एक कविता
मगर पूरी ही नहीं हो पा रही है यह कविता....
यह कविता भूखे लोगों की है
बेबस और कमजोर लोगों की है
यह कविता मेहनतकश लोगों की है
यह कविता स्त्रियों और बच्चों की है
यह कविता तमाम असहायों की है
यह कविता पीड़ित मानवता की है
यह कविता लोगों की जीवंत अभीप्सा की है
कविता तो यह उपरोक्त लोगों की ही है
मगर अनचाहे ही यह कविता
कुछ दरिंदों की है,कुछ राक्षसों की भी
कुछ हरामियों की की है,कुछ कमीनों की भी
इंसानियत के दुश्मन कुछ समाजों की भी
धर्म के आडम्बर से भरे कुछ लोगों की भी
स्त्रियों और बच्चों का शोषण करने वालों की भी
और मानवता को शर्मसार करने वालों की भी
यह कविता कुछ अत्याचारियों की भी है और
कुछ अनंत धन-पशुओं और देह-भोगियों की भी है
मगर दोस्तों यह कविता मेरी-आपकी किसी भी नहीं है
क्योंकि हम तो यह कविता पढने-लिखने
फेसबुक पर लाईक और कमेन्ट करने वाले शरीफ लोग हैं
और कवितायें शरीफों की नहीं होती
इसलिए आईये ओ दोस्तों
हम कुछ बेहतर अगर नहीं कर सकते
खुद भी अगर बदल नहीं सकते
आज से हम भी हरामी और कमीने बन जाएँ
और कोई हम पर भी कुछ कविता लिख ही डाले....!!
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कहीं भी कुछ भी हो जाए यह हमारी जिम्मेवारी नहीं है
और हम अगर कुछ कर भी ना पायें तो लाचारी नहीं है
कोई तड़पता हुआ हमारी आँख से सामने मर भी जाए,तो क्या हुआ
किसी स्त्री की इज्जत सरेआम लुट भी जाए तो क्या हुआ
अभी-अभी कोई गोली ही मार दे किसी को तो हम क्या करें
अभी कोई किसी को उठा कर ले जाए तो हम क्या करें
हम क्या करें अगर संसद में शोर-शराबा हो रहा होओ
हम क्या करें जब सब कुछ हमारा लुट-पिट रहा होओ
अभी-अभी हम भ्रष्टाचार पर चीखेंगे-चिल्लायेंगे
अभी-अभी हम किसी गीत पर झूमेंगे गायेंगे
अभी-अभी हम किसी एक चोर को गद्दी से हटायेंगे
अभी-अभी हम किसी दुसरे चोर की सरकार बनवायेंगे
बहुत कुछ घटने वाला है अभी हमारी आँखों के सामने
पूरा देश ही लुट जाने वाला है हमारी आँखों के सामने
अपने अहंकार के बात-बात पर हर किसी से लड़ने वाले हम
कभी एक क्षण भर के लिए भी यह नहीं सोच पाते कि
अपना यह लुटा-पिटा अहंकार और यह झूठी गैरत लिए
खुदा के घर वापस जाकर भी उसे क्या मुहं दिखायेंगे !!
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कहनी होती हैं बहुत सारी बातें
कहते-कहते रूप बदल जाता है !
खडा होता हूँ आईने के सामने
इकबारगी अक्श बदल जाता है !
कहना चाहूँ हूँ तुझसे कुछ,मगर
तेरे आगे लफ्ज़ फिसल जाता है !
हर बार तिरी तारीफ़ करता हूँ
हर बार कुछ और बदल जाता है !
रुकना तो बहुत चाहता है आदम
यहाँ से पर चला ही हर जाता है !
हर बार तेरे पा पकड़ता हूँ यारब
और हर बार तू मुकर जाता है !
तू भी इक किस्सा बन जायेगा "गाफिल"
बहुत तू यहाँ अपनी हेंकड़ी दिखाता है !
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मुझसे बचकर रहना ओ तू प्यारे
मुझमें तो इक आग बसा करती है !
हल पल जो मुझमें बहती रहती है
अपनी कसौटी मुझे कसा करती है !
मैंने जब-जब तुझको देखा यारब
कोई लपट मुझमें निकला करती है !
मैं मांगू तो क्या मांगू तुझसे यारब
तेरी कमी धरती पर बहुत खलती है !
ऊपर जाकर भी तुझको देखूंगी मैं
मेरी मां मुझसे अक्सर कहा करती है !
मुझको लिखना कुछ अच्छा नहीं आता
दुनिया अच्छी है,इसको अच्छा कहती है !
===========================तेरा मेरा तू क्या करता है
तेरा सब धरा रह जाएगा !
उलटा-सीधा करता रहता है
उससे आँख मिला पायेगा ?
थोड़ा दूसरों को भी बांटा कर
ज्यादा खाया तो मर जाएगा !
जिन्दगी उसकी दी नेमत है
बेहतर जी ले,कब मर जाएगा !
तुझमें दम बहुत है प्यारे,पर
उससे डर गो,कुछ हो जाएगा !
कितना लालची बन्दा है तू
सबका हिस्सा ही खा जावेगा !
बस इक छोटा-सा परिवार तेरा
बस कर अब कितना खावेगा !
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इन दिनों खुश बहुत रहता हूँ
इन दिनों मुझको गम बहुत हैं !
खुद से खुद को झेलने के लिए
इक खुद अकेले हम बहुत हैं !
खुद से हम क्या-क्या चाहते हैं
खुद से हमको जंग बहुत है !
आज करे क्यूँ,कल कर लेना
कुछ करने को जनम बहुत हैं !
क्या-क्या करना है आदम को
ये सोचने को आदम बहुत हैं !
धरती को हम खूब सोखेंगे
धरती में अभी दम बहुत है !!
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सबके बीच भी तनहा हूँ,अजीब हूँ मैं
क्या-क्या बकता रहता हूँ अजीब हूँ मैं !!
कितने सवालों के घेरे में है ये आदम
उलटा उससे प्रश्न करता हूँ,अजीब हूँ मैं !!
सब लागों के सारे गम को खुद में भरकर
खुद ले लिपट कर रोता हूँ अजीब हूँ मैं !!
तुझे अक्सर देखा करता हूँ कुछ इस तरह
तुझको खुद में पाया करता हूँ अजीब हूँ मैं !!
खुद के साथ भी बहुत देर तक रह नहीं पाता
खुद को तनहा छोड़ जाता हूँ अजीब हूँ मैं !!
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आगे बढ़ते जाने की एक अंतहीन हवस
ज्यादा और ज्यादा पाने की एक बेकाबू प्यास
सब कुछ को पाने के लिए किये जाते उलटे-सीधे
हमें खुद को तो जला-पिघला रहे हैं ही हैं
मगर हमसे ज्यादा जल रही है यह धरती
जो जाने कब मिट कर ख़त्म हो जायेगी
यह हम धरती को प्यार करने वालों को भी नहीं पता,,,,!!
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जीवन का अर्थ यूँ तो आनंद है,किन्तु खुद के चारों ओर दुःख-ही-दुःख व्याप्त हो,
 तो उसे अपनी शक्ति भर दूर करना भी एक कर्त्तव्य है...
और यह कर्त्तव्य ही दरअसल एक आनंद ही है.....!!
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