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शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011



उठ रही है आग आज मिरे सीने में 

कि चढ़ रहा है कोई दिल के जीने में !!
धूप है कि सर पे चढ़ती जा रही है
और निखार आ रहा मिरे पसीने में !!
अब यहीं पर होगा सभी का फैसला 
कोर्ट सड़क पर बैठ चुकी है करीने में !!
आओ कि उठ रही ललकार चारों तरफ 
कोई कसर ना बाकी रखो अपने जीने में !!
भले ही कोई गांधी हो ना कोई सुभाष 
इस हजारे को ही बसा लो अपने सीने में !!
अब भी अगर जागे नहीं तो फिर कहना नहीं
कोई बचाने आयेगा नहीं तुम्हारे सफीने में !! 
  

5 टिप्‍पणियां:

Randhir Singh Suman ने कहा…

nice

Patali-The-Village ने कहा…

सार्थक और सुंदर प्रस्तुति|

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

ग़ज़ल के भाव बहुत प्रेरक हैं।

Bharat Bhushan ने कहा…

अच्छे बिंदु को रेखांकित किया है आपने.

हरीश सिंह ने कहा…

बहुत अच्छी पोस्ट, शुभकामना, मैं सभी धर्मो को सम्मान देता हूँ, जिस तरह मुसलमान अपने धर्म के प्रति समर्पित है, उसी तरह हिन्दू भी समर्पित है. यदि समाज में प्रेम,आपसी सौहार्द और समरसता लानी है तो सभी के भावनाओ का सम्मान करना होगा.
यहाँ भी आये. और अपने विचार अवश्य व्यक्त करें ताकि धार्मिक विवादों पर अंकुश लगाया जा सके., हो सके तो फालोवर बनकर हमारा हौसला भी बढ़ाएं.
मुस्लिम ब्लोगर यह बताएं क्या यह पोस्ट हिन्दुओ के भावनाओ पर कुठाराघात नहीं करती.