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बुधवार, 23 मार्च 2011

अब अगर जो वो रास्ते में आ जाए !!

य काफिया और रदीफ़ तो हटा दे जाहिद ,ज़रा मेरे हर्फ़ ग़ज़ल में समां जायें !!
जिंदगी का हर लम्हा ही एक मकता है ,हर शै के बाद दूसरी शै ही आ जाए !!
मुश्किलों ने हमसे कर ली है अब तौबा, अब अगर जो वो रास्ते में आ जाए !!
उम्र को ही पैराहन की तरह ओढ़ा हुआ है,मौत जब आए,इसी में समां जाए !!
अब तो तू ही तू नज़र आता है यारब,जहाँ में जहाँ-जहाँ तक मेरी नज़र जाए !!
हम हर्फ़ को ही खुदा समझाते हैं यारा,हर हर्फ़ की ही जद में खुदा आ जाए !!
इक जरा मन को कडा कर लीजिये ,हर फिक्र धूल में उड़ती ही नज़र आए !!
इतनी कड़ी निगाहों से ना देखिये हमें,कहीं खुदा ही घबरा कर ना आ जाए !!
दुनिया में रसूख उसी का होता है,जिसे,रसूख की फिक्र कभी भी ना सताए !!
सिर्फ़ मुहब्बत का भूखा हूँ"गाफिल",प्यार से मुझे कोई कुछ भी खिला जाए !!

7 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

Bahut khubb sir ....
me to abhi soch hi rha tha ke kuch esa likhu par aap ne to anjaam hi de diya. pada kar maja aaya....

केवल राम ने कहा…

आपने जीवन को नयी व्याख्या दी है ..जीवन को मक्ता कहा है ..कितना वजन है आपकी इस बात में ..आपका आभार इस सार्थक और सुंदर प्रस्तुति के लिए

hamarivani ने कहा…

nice

विशाल ने कहा…

अच्छी ग़ज़ल.

बहुत खूब.
सलाम.

हरीश सिंह ने कहा…

gazal achchhi lagi par
हमें तो आज शर्म महसूस हुयी ..भारत की जीत की ख़ुशी उड़ गयी ... आपकी नहीं उडी तो आईये उड़ा देते है.
डंके की चोट पर

हरीश सिंह ने कहा…

हमें तो आज शर्म महसूस हुयी ..भारत की जीत की ख़ुशी उड़ गयी ... आपकी नहीं उडी तो आईये उड़ा देते है.
डंके की चोट पर

Amrita Tanmay ने कहा…

Bahut pyari , mahakati hui khubsurat rachana...badhai