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बुधवार, 16 मार्च 2011

कुछ न कुछ करते रहिये....!!!


कुछ न कुछ करते रहिये यां जमे रहने के लिए ,
इस जद्दोजहद में ख़ुद के ठने रहने के लिए !!
यहाँ कोई ना लेगा भाई आपको हाथो-हाथ ,
बहुत जर्फ़ चाहिए आपके खरे रहने के लिए !!
इन्किलाब न कीजै रहिये मगर आदमी से ,
रूह का होना जरुरी है अपने रहने के लिए !!
सब मुन्तजिर हैं कि मिरे लब खुले कब ,
कुछ बात तो हो मगर मेरे कहने के लिए !!
इस दुनिया से इन्किलाब की उम्मीद न करो,
मर रहे सब लोग यां अपने जीने के लिए !!
हम झगडों के कायल हैं ना अमन के खिलाफ,
कुछ आसमां हो कबूतरों के उड़ने के लिए !!
हम रहना चाहते हैं सबसे मुहब्बत के साथ ,
कोई तैयार ही नहीं है प्यार करने के लिए !!
जो कर रहे हो तुम उसके सिला की सोचो ,
नदिया बही जा रही है बस बहने के लिए !!
पशोपेश में है"गाफिल"क्या करे ना करे ,
क्या य जगह बची है हमारे रहने के लिए !!

6 टिप्‍पणियां:

केवल राम ने कहा…

रूह का होना जरुरी है अपना रहने के लिए
कितनी सटीक बात है ..बिना रूह के तो हमारा अस्तित्व नहीं ...हम उसका अंश हैं और यह परमात्मा जीवन का सत्य है ..हमें इसे पाना है रूह को अमरत्व प्रदान करने के लिए ...आपका आभार

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर शेर|

होली पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ|

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

वाह, क्या बात है...।
अच्छी ग़ज़ल।

होली पर्व की अशेष हार्दिक शुभकामनाएं।

Prem Farukhabadi ने कहा…

इस दुनिया से इन्किलाब की उम्मीद न करो,
मर रहे सब लोग यां अपने जीने के लिए !!
bahut behtar bhai.

Amrita Tanmay ने कहा…

Khubsurat...pyari rachana

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...