कैसे,किन शब्दों में कह दी उसने अपने दिल की बात....
खिलखिलाकर हंसने लगी काली अंधियारी पगली रात !!
चन्दा अचकचाकर जागा और लेने लागा जब अंगडाई
शरमाकर तब उठ बैठी और जगमगाने लग गयी रात !!
तडके ही इक सपना देखा कि जम्हाई लेती थी रात
धरती और आसमां के बीच पुल बन जाती थी रात !!
अब तो मैं खुद भी बातें करने अंगडाई लेकर उठ बैठा हूँ
ना जाने अब कब क्या बोलेगी अनजानी-दीवानी रात !!
7 टिप्पणियां:
अब तो मैं खुद भी बातें करने अंगडाई लेकर उठ बैठा हूँ
ना जाने अब कब क्या बोलेगी अनजानी-दीवानी रात !!
बहुत सुंदर ...रात .....!
रात को बड़ी खूबसूरती से अपनी कविता के माध्यम से उजागर किया है आपने।
कैसे,किन शब्दों में कह दी उसने अपने दिल की बात....
खिलखिलाकर हंसने लगी काली अंधियारी पगली रात !sunder abhivyakti
rachana
सपनों से सीजी कविता. ऐसी अभिव्यक्तियाँ सहज आती हैं और आसान भी नहीं होतीं.
अब तो मैं खुद भी बातें करने अंगडाई लेकर उठ बैठा हूँ
ना जाने अब कब क्या बोलेगी अनजानी-दीवानी रात !!
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
अंधेरी रात का चित्रण साथ ही एक शंका भी कि न जाने क्या बोल देगी ये काली अधियारी
...आदमी होने का कोई फायदा ना था.....चुपचाप मर गया....भूत बन गया.........मगर यहाँ भी पाया कि जितना निकृष्ट मैं आदमी था....उतना ही निकृष्ट भूत भी.....!!........अब सोच रहा हूँ कि अब क्या करूँ....दुबारा कैसे मरुँ........??
bahut achha likha hai ...
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