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गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

ए रात ज़रा ठहर जा ना............

ए रात ज़रा ठहर जा ना 
मैं थोडा सा तुझमें से गुजर तो लूं....
मेरी आगोश में ज़रा देर ठहर तो जा 
इक ज़रा तेरा एक बोसा तो ले लूं..... 
तुझे थाम लूं और कहूँ 
कि प्यारी है सच तू मुझे बहुत....
तेरा अन्धेरा भर रहा है मुझमें 
मैं और गहरा हो रहा हूँ शायद.....
एय रात ज़रा ठहर जा ना प्लीज़ 
मैंने अपने-आप को आज देखना है 
पूरा-का-पूरा समूचा,और 
रौशनी खुद को देखने ही नहीं मुझे....
मैं पहचान भी नहीं पा रहा हूँ एय रात 
कि मेरा चेहरा कौन सा है,कौन हूँ मैं....
एय रात....इस पूरी रात को 
तू इसी तरह गुजर जाने दे....
कल कोई और सवेरा होगा 
जहां तू होगी ही नहीं 
और मैं.....
मैं तो कभी था ही नहीं....!!!!   

3 टिप्‍पणियां:

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

kya baat...kya baat...kya baat!!

Shabad shabad ने कहा…

लोग तो उजाले में देखने की बात करते हैं मगर
आपने अन्धेरा माँगा है ?

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) ने कहा…

aur main to kabhi tha hi nahi...........hmmm achchi lagi ye pankti.kuch jyada hi.